Book Title: Shraman Mahavira
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 304
________________ २७८ श्रमण महावीर २. श्रमण जीवन का ज्ञानपूर्वक स्वीकार ६. किरियाकिरियं वेणइयाणुवायं, अण्णाणियाणं पडियच्च ठाणं । से सव्ववायं इह वेय इत्ता, उवहिए सम्म स दीहरायं ।' -~-भगवान् क्रियावाद, अक्रियावाद, विनयवाद और अज्ञानवाद-इन वादों को जानकर फिर मोक्ष-साधना में उपस्थित हुए। साधना का संकल्प अवस्थित हो जाता है, उसका भंग नहीं हो सकता। साधना के जिस तल पर पहुंच हो जाती है, उसके नीचे नहीं उतरा जा सकता, प्रगति के बाद प्रतिगति नहीं हो सकती। इस सिद्धान्त के अनुसार भगवान् आजीवन मोक्ष के लिए समर्पित हो गए। ३. तप और ध्यान ७. उवहाणवं दुक्खखयट्टयाए। -भगवान् ने पूर्व-अजित दुःखों को क्षीण करने के लिए तपस्या की। ८. अणुत्तरं झाणवरं झियाइ।' -भगबान् ने सत्य की प्राप्ति के लिए ध्यान किया। ९. अदु पोरिसिं तिरियभित्ति, चक्खु मासज्ज अंतसो झाई। -भगवान् ने प्रहर-प्रहर तक तिरछी भित्ति पर आंख टिकाकर ध्यान किया। १०. मीसीभावं पहाय से झाई।। -~-भगवान् जन-संकुल स्थानों को छोड़कर एकान्त में ध्यान करते थे। १. सूयगडो : १।६।२७ । २. सूयगडो : १।६।२८ । ३. सूयगडो : १।६।१६ । ४. आयारो : ६१।५। ५ यायारो : ६।१७ ।

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