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श्रमण महावीर
देश और काल मानवीय प्रगति के बहुत बड़े आयाम हैं। कोई काल ऐसा आता है कि उसमें अनेक महान आत्माएं एक साथ जन्म लेती हैं। महावीर का युग ऐसा ही था। उस युग ने धर्म को ऐसी गति दी कि उसका वेग आज भी तीन है। किन्तु उस वेग ने धर्म की भूमि में कुछ रेखाएं डाल दीं। उन रेखाओं ने जाति का रूप ले लिया। इसीलिए यह प्रश्न पूछा जाता है कि जैन हिन्दू हैं या नहीं ? महावीर और बुद्ध ने वैदिक विधि-विधानों का मुक्त प्रतिरोध किया, पर आश्चर्य है कि उस युग में किसी के मस्तिष्क में यह प्रश्न नहीं उभरा कि जैन और बौद्ध हिन्दू हैं या नहीं? उस समय धर्म का कमल जातीयता के पंक से ऊपर खिल रहा था।