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चक्षुदान
१९३ भगवान् की बात सुन मेघकुमार का मानस आन्दोलित हो गया। वह चित्त की गहराइयों में खो गया। उसे कुछ विलक्षण-सा अनुभव होने लगा। ऐसा होना जरूरी था। उसके मानस को आश्चर्य में डाले बिना, आन्दोलित किए बिना, उसे मोड़ देना सम्भव नहीं था। चेतना-जागरण के रहस्यों को जानने वाले ऐसा कर व्यक्ति को खोज की यात्रा में प्रस्थित कर देते हैं । मेधकुमार प्रस्तुत को भूल गया। जो बात भगवान को कहने आया था, वह उसके हाथ से छूट गई। उसके मन में जिज्ञासा के नए अंकुर फूट पड़े। उसकी भीतरी खोज प्रारम्भ हो गई। उसके मानवीय पर्याय पर हाथी का पर्याय आरोहण कर गया।
'भंते ! मैं पिछले जन्म में हाथी था ?' मेघ ने जिज्ञासा की।
भगवान ने बताया-'मेघ, तुम अतीत की दिशा में प्रयाण करो और देखो। इससे तीसरे जन्म में तुम हाथी थे-विशाल और सुन्दर। तुम वैताढ्य पर्वत की उपत्यका के वन में रहते थे। ग्रीष्म ऋतु का समय था। वृक्षों के संघर्षण से आग उठी। तेज हवा का सहारा पा वह प्रदीप्त हो गयी । देखते-देखते पोले पेड़ गिरने लगे। वनांत प्रज्वलित हो उठा। दिशाएं धूमिल हो गई। चारों ओर अरण्य पशु दौड़ने लगे। उस समय तुम भी अपने यूथ के साथ दौड़े। तुम्हारा यूथ आगे निकल गया । तुम बूढ़े थे, इसलिए पिछड़ गए। दिशामूढ हो दूसरी दिशा में चले गए। तुमने एक सरोवर देखा । तुम पानी पीने के लिए उसमें उतरे। उसमें पानी कम था, पंक अधिक । तुम तीर से आगे चले गए, पानी तक पहुंचे नहीं, बीच में ही पंक में फंस गए । तुमने पानी पीने के लिए सूंड को फैलाया। वह पानी तक नहीं पहुंच सकी। तुमने पंक से निकलने का तीव्र प्रयत्न किया । तुम निकले नहीं, और अधिक फंस गए। उस समय एक युवा हाथी वहां आया । वह तुम्हारे ही यूथ का था । तुम ने उसे दंत-प्रहार से व्यथित कर यूथ से निकाला था । तुम्हें देखते ही उसमें क्रोध का उफान आ गया। वह तुम्हें दंत-प्रहार से घायल कर चला गया। तुम एक सप्ताह तक कष्ट से कराहते रहे। वहां से मरकर तुमने गंगा नदी के दक्षिणी कूल पर विन्ध्य पर्वत की तलहटी में फिर हाथी का जन्म लिया। वनचरों ने तुम्हारा नाम रखा मेरुप्रभ। ___एक बार वन में अकस्मात् दावानल भड़क उठा । तुम अपने यूथ के साथ वन से भाग गए। दावानल ने तुम्हारे मन में विचित्र-सा कम्पन पैदा कर दिया । तुम उस गहरे आघात की स्थिति में स्मृति की गहराई में उतर गए। तुम्हें वह दावानल अनुभव किया हुआ-सा लगा। तुम अनुभव की यात्रा पर निकल गए। आखिर पहुंच गए। पूर्वजन्म की स्मृति हो गई। वैताढ्य के वन का दावानल आंखों के सामने साकार हो गया।
'तुमने अतीत की स्मृति का लाभ उठा एक मंडल बनाया । उसे सर्वथा वनस्पतिविहीन कर दिया। एक बार फिर दावाग्नि से वन जल उठा । पशु पलायन कर उस