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धर्मपरिवर्तन : सम्मत और अनुमत
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भगवान् महावीर के पास प्रव्रजित हुए । 'जैन, वौद्ध और आजीवन धर्म के अनुयायी वैदिक धर्म में दीक्षित नहीं हुए, यह नहीं कहा जा सकता । यह परिवर्तन अपनी रुचि और विचार के अनुसार चलता था । यह जाति-परिवर्तन नहीं था । इससे राष्ट्रीय चेतना भी नहीं बदलती थी । यह कार्य केवल विचार- परिवर्तन तक हो सीमित था । इसलिए इसे सब धर्मों द्वारा मान्यता मिली हुई थी ।
मगध सम्राट् श्रेणिक का व्यक्तित्व उन दिनों बहुचर्चित था । उसके पिता का नाम प्रसेनजित था। वह भगवान् पार्श्व का अनुयायी था । श्रेणिक अपने कुलधर्म का अनुसरण करता था। एक वार प्रसेनजित ने क्रुद्ध होकर श्रेणिक को अपने राज्य से निकाल दिया । उस समय वह एक वौद्ध मठ में रहा। वहां उसने वौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया। वह राजा बनने के बाद भी वौद्ध बना रहा । उसकी पटरानी थी चिल्लणा । वह भगवान् पार्श्व की शिष्या थी और श्रेणिक था भगवान् बुद्ध का शिष्य । दोनों दो दिशागामी थे और दोनों चाहते थे एक दिशागामी होना । श्रेणिक चिल्लणा को बौद्ध धर्म में दीक्षित करना चाहता था और चिल्लणा श्रेणिक को जैन धर्म में दीक्षित करना चाहती थी। दोनों में विचार का भेद या पर पारिवारिक प्रेम से दोनों अभिन्न थे । उनका विचारभेद उनके सघन प्रेम में एक भी छेद नहीं कर सका । भगवान् महावीर और भगवान् बुद्ध - दोनों अहिंसा, मंत्री, शान्ति भोर सहिष्णुता के प्रर्वतक थे। दोनों घृणा करना नहीं सिखाते थे । इसलिए राजा और रानी के बीच कभी भी घृणा का बीज अंकुरित नहीं हुआ । एक दिन श्रेणिक मंडिकुक्ष चैत्य में क्रीड़ा करने गया । उसने देखा, एक मुनि वृक्ष के नीचे ध्यानमुद्रा में खड़ा है । अवस्था में तरुण और सर्वाग सुन्दर श्रेणिक उसके रूप लावण्य और सौकुमार्य पर मुग्ध हो गया । वह मुनि को अपलक निहारता रहा। मुनि की आकृति से सर रहे सौम्य का पान कर उसकी आंखें खिल उठीं। वह मुनि के निकट आकर बोला- 'भंते ! आप कौन हैं ? इस इठलाते योवन में आप मुनि पयों बने हैं? में जानना चाहता । मुझे आशा है आप मेरी जिज्ञासा का समाधान देंगे ।'
गुनि ध्यान पूर्ण कर बोले- 'राजन् ! मुझे कोई नाम नहीं मिला, इसलिए मैं मुनि वन गया ।'
'वावं ! आप जैसे व्यक्तित्व को कोई नाथ नहीं मिला ?'
'नहीं मिला तभी तो कह रहा हूं।'
'बाप मेरे साथ चले । में आपका नाम वनता हूं। आपको मरण देता हूं। मेरे प्रासाद में ग्रुप से रहें और सब प्रकार के भोगों का उपभोग करें।'
'तुम स्वयं अनाथ हो। तुम मुझे क्या परण दोगे ? मेरे नाम कैसे बनोगे ?
१. दूसरा तथा दोदरादिक सूत आदि ।