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समता के तीन आयाम
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गुण और उसकी क्रिया नहीं मिलती । गुण और क्रिया की विलक्षणता के बिन्दु पर महावीर ने द्वैत का प्रतिपादन किया। महावीर न द्वैतवादी हैं और न अद्वैतवादी। वे द्वैतवादी भी हैं और अद्वैतवादी भी हैं । उनके दर्शन में विश्व का मूल एक भी है और अनेक भी है । अस्तित्व जैसे व्यापक गुण की दृष्टि से देखें तो एकता मौलिक है । चैतन्य जैसे विलक्षण गुण की दृष्टि से देखें तो अनेकता मौलिक है। निष्कर्ष की भाषा में कहें तो एकता भी मौलिक है और अनेकता भी मौलिक है।
महावीर के दर्शन में अनन्त परमाणु हैं और अनन्त आत्माएं । प्रत्येक परमाणु __ और प्रत्येक आत्मा बिम्ब है। हर विम्ब का अपना-अपना प्रतिविम्ब है। गुण का स्थायीभाव विम्ब है और उसकी गतिशीलता प्रतिविम्ब है।
महावीर ने इस दर्शन की भूमि में साधना का वीज बोया । अचेतन के सामने साधना का कोई प्रश्न नहीं है। उसका होना और गतिशील होना-दोनों प्राकृतिक नियमों से होते हैं । ज्ञानपूर्वक कुछ नहीं होता । चेतन का होना प्राकृतिक नियम से जुड़ा हुआ है किन्तु उसकी गतिशीलता प्राकृतिक नियम से संचालित नहीं होती। वह ज्ञानपूर्वक बदलता है-जो होना चाहता है उस दिशा में प्रयाण करता है । यही है उसकी साधना । मनुष्य का ज्ञान विकसित होता है इसलिए वह विकास के चरमविन्दु पर पहुंचना चाहता है । उसके सामने चेतना की दो भूमिकाएं हैं-एक द्वन्द्व की और दूसरी द्वन्द्वातीत । जीवन और मृत्यु, सुख और दुःख, मान और अपमान, हर्ष और विषाद जैसे असंख्य द्वन्द्व हैं। ये मन पर आघात करते रहते हैं । उसमें मन का संतुलन बिगड़ जाता है । वह विषम हो जाता है।
द्वन्द्व के आघात से बचने के लिए महावीर ने समता की साधना प्रस्तुत की। उनके द्वारा प्रतिपादित धर्म का नाम है-समता धर्म, सामायिक धर्म । इसके दो अर्थ हैं
१. प्राणी-प्राणी के बीच में समता की खोज और अनुभूति । २. द्वन्द्वों के दोनों तटों के बीच में मानसिक समता के पुल का निर्माण ।
समता का विकास मैत्री, अभय और सहिष्णुता-इन तीन आयामों में होता है। जिस व्यक्ति में प्रतिकूल परिस्थिति को सहन करने की क्षमता जागृत नहीं होती, वह अभय नहीं हो सकता और भयभीत मनुष्य में मैत्री का विकास नही हो सकता। जिसमें अनुकूल परिस्थिति को सहन करने की क्षमता जागृत नहीं होती, वह गर्व से उन्मत्त होकर दूसरों में भय और अमैत्री का संचार करता है। तीनों आयामों में विकास करने पर ही समता स्थायी होती है।
समता एक आयाम में विकसित नहीं होती । यह होता है कि हम किसी व्यक्ति को मंत्री के आयाम में अधिक गतिशील देखते हैं, किसी को अभय के आयाम में और किसी को सहिष्णुता के आयाम में। इनमें से एक के होने पर शेष दो का होना अनिवार्य है। समता के होने पर इन तीनों का होना अनिवार्य है । इन तीनों का