________________
३५
सर्वजन हिताय : सर्वजन सुखाय
भिन्न-भिन्न वस्तुओं को देखने के लिए भिन्न-भिन्न आंखों की जरूरत नहीं है-इस वाक्य की अभिधा से असहमति नहीं है तो इसकी व्यंजना से पूर्ण सहमति भी नहीं है।
गुरु ने शिष्य से पूछा-'देखता कौन है ?' शिष्य ने कहा-'लांख ।' गुरु-'क्या अंधकार में आंख देख सकती है ?' शिष्य-प्रकाश और आंख दोनों मिलकर देखते हैं।'
गुरु-'आंख भी है और प्रकाश भी है पर आदमी अन्यमनस्क है तो क्या वह देखता है ?'
शिष्य-'मैं अपनी बात में थोड़ा संशोधन करना चाहता हूं। मन, प्रकाश और आंख-तीनों मिलकर देखते हैं।'
गुरु-'एक बच्चे ने आग को देखा और उसमें हाथ डाल दिया। क्या उसने आग को नहीं देखा ?'
शिष्य-'बच्चे मे बुद्धि का विकास नहीं होता । वास्तव में पूर्ण दर्शन तव होता है जब बुद्धि, मन, आंख और प्रकाश-ये चारों एक साथ होते हैं।'
गुरु-'एक बुद्धिमान् आदमी को मैंने जुआ खेलते देखा है । क्या वह देखता
शिष्य--'सही अर्थ में वही देखता है, जिसकी बुद्धि पर अस्तित्व का वरद हस्त होता है।' ___ व्यक्ति के दो रूप होते हैं-व्यक्तित्व और अस्तित्व। अस्तित्व का अर्थ है 'होना' और व्यक्तित्व का अर्थ है 'कुछ होना'। हम नाम-रूप आदि को देखते हैं, तब हमें व्यक्तित्व का दर्शन होता है। हम चेतना के जागरण को देखते हैं तब हमें