________________
१६५
शान्ति का सिंहनाद करते हैं। मनुष्य सर्वाधिक विकसित जीव है । उसमें अतीत की स्मृति और भविष्य की सष्ट कल्पना है। इसलिए वह सबसे अधिक संग्रह करता है।
मनुष्य जव अरण्यवासी था तब केवल खाने के लिए सीमित संग्रह करता था। जब वह समाजवासी हो गया तव संग्रह के दो आयाम जुल गए--एक आवश्यकता और दूसरा बड़प्पन ।
आवश्यकता को पूरा करना सबके लिए जरूरी है। उसमें किसी को कैसे आपत्ति हो सकती है ? बड़प्पन में बहुतों को आपत्ति होती है और वह विभिन्न युगों में विभिन्न रूपों में होती रही है।
महावीर के युग में लोग भूखे नहीं पे और आर्थिक समानता का दृष्टिकोण भी निर्मित नहीं हुआ पा । लोग भूसे नहीं थे और भाग्यवाद की पकड़ बहुत मजबूत थी, इसलिए अर्थ-संग्रह करने वालों के प्रति आक्रोशपूर्ण मानस का निर्माण नहीं हुमा था।
राज्य-व्यवस्था द्वारा भी संग्रह प्रतिबंधित नहीं था। हर व्यक्ति को संग्रह करने को मुक्त छूट पी। इसे समझने में मम्मण की पटना बहुत सहायक होगी।
नापाढ़ की पहली रात । बादलों से घिरा हुआ आमाग । घोर अंधकार । तूफानी हवा। उफनती नदी का बालकल नाद । इस वातावरण में हर आदमी मकान की शरण ले रहा था।
सम्राट् धेणिक महारानी चेल्लणा के साथ प्रासाद के वातायन में बैठे थे। बिजली काँधी। महारानी ने उसके प्रकाश में देगा, एक मनुष्य नदी के तट पर ग्रहा है और उसमें बहकर आए हुए काप्ठ-गुण्डों को खींच-जींचकर संजो रहा है। महारानी का मन मारणा से भर गया। उसने श्रेणिक ने कहा-'आपने राज्य में लोग वहत गरीब। आपका मानन उनकी गरीबी को मिटाने का प्रयत्न क्यों नहीं करता? मुझे लगता है कि आप भी नदी की भांति भरे हुए समुद्र को भरने है । बाली को कोई नहीं भरता।'
'मेरे राज्य में कोई भी आदमी गरीब नहीं है । रोटी, कपड़ा और मकान सबको मुलभ हैं। फिर तुमने यह बारोप को लगाया ?'
"में भारोप नहीं लगा रही हूं, जांचों-देनी पटना बता रही हैं।' 'उस प्रमाण तुम्हारे पान ?'
'प्रत्यक्ष को प्रमाण पी पपा आवश्परता है ? मै मापने एक प्रान पूरनी ह किन पालराति मे यदि कोई जानी जंगल में नाम कर लो वश आप नहीं मानेंगे विवाद गरीब नहीं, भूता नहीं है?' ___ सभागा। पर मममम मिनी गल में होगी भावना
मानन : दिलीपीन मिया में किसी पर