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श्रमण महावीर
ली। एक ही क्षण में भगवान के सामने त्रिशला और सिद्धार्थ उपस्थित हो गए। वे कम्ण स्वर में बोले, 'कुमार ! इस बुढ़ापे में हमें छोड़कर तुम कहां आ गए? चलो, एक बार फिर अपने घर की ओर । देखो, तुम्हारे बिना हमारी कैसी दयनीय दशा हो गयी है ?' उन्होंने करुणा के तीखे-तीखे बाण फेंके, फिर भी भगवान् का मन विध नहीं पाया।
त्रिशला और सिद्धार्थ जैसे ही उस रंगमंच से ओझल हुए, वैसे ही एक अप्सरा वहां उपस्थित हो गई। उसके मोहक हाव-भाव, विलास और विभ्रम जल-ऊर्मी की भांति वातावरण में हल्का-सा प्रकंपन पैदा कर रहे थे। उसकी मंथर गति और मंद-मृदु मुस्कान वायुमंडल में मादकता भर रही थी। उसके नेउर के चूंघरु बरबस सबका ध्यान अपनी ओर खींच रहे थे। किन्तु भगवान् पर उसके जादू का कोई प्रभाव नहीं हुआ।
और भी न जाने कितने बवंडर आए और अपनी गति से चले गए। भगवान् के ध्यान का कवच इतना सुदृढ़ था कि वे उसे भेद नहीं पाए । यह नवनीत इतना गाढ़ा था कि कोई भी आंच उसे पिघाल नहीं पाई। सारे बादल फट गए। आकाश निरभ्र हो गया और सूरज अपनी असंख्य रश्मियों को लिये हुए विजय की लालिमा से फिर प्रदीप्त हो उठा। भूख-विजय
भगवान् महावीर दीर्घ-तपस्वी कहलाते हैं। उन्होंने बड़ी-बड़ी तपस्याएं की हैं। उनका साधनाकाल साढ़े बारह वर्प और एक पक्ष का है। इस अवधि में उनकी उपवास-तालिका यह है० दो दिन का उपवास
बारह वार। ० तीन दिन का उपवास
दो सो उन्नीस वार। ० पाक्षिक उपवास
वहत्तर बार। ० एक मास का उपवास
बारह बार। ० टेढ़ माम का उपवास
दो बार। ० दामामगा उपवाम
छह वार। ० बाई माग का उपवास
दो बार। • लीन माम का उपवास
दो वार। . चार मामका उपवाम
नो बार। • पन मानवीम दिन का उपवास - एक बार।
~ एक बार।
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, १० : ०४, ३०५ ।