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श्रमण महावीर
भगवान् स्वार्थवश अपने कल्याण में प्रवृत्त नहीं थे। यह एक सिद्धांत का प्रश्न था। जो व्यक्ति स्वयं खाली है, वह दूसरों को कैसे भरेगा ? जिसके पास कुछ नहीं है, वह दूसरों को क्या देगा? स्वयं विजेता बनकर ही दूसरों को विजय का पथ दिखाया जा सकता है । स्वयं बुद्ध होकर ही दूसरों को वोध दिया जा सकता है। स्वयं जागृत होकर ही दूसरों को जगाया जा सकता है । भगवान् स्वयं बुद्ध हो गए और दूसरों को बोध देने का अभियान शुरू हो गया।