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गंगातील माधना
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भगवान महावीर ने अपने प्रत्यक्ष बोध वे. आधार पर मत्य का प्रतिपादन रिया । भगवान पार्श्व भी तीर्थकर धे। उन्होंने अपने प्रत्यक्ष बोध में सत्य का प्रतिपादन किया। महावीर के प्रतिपादन का पावं के प्रतिपादन ने भिन्न होना आवश्यक नहीं है तो अभिन्न होना भी आवश्यक नहीं है। मत्य के मनन्त पक्ष है। प्रत्यक्षदर्णी उन्हें जान लेता है पर उन सबका प्रतिपादन नहीं कर पाता । माननी मालित अनीम है, वाणी की पस्ति ससीम है। इसलिए प्रतिपादन नौमित लोर गापेक्ष ही होता है । भगवान् पावं को जिस तत्त्व के प्रतिपादन की अपेक्षा पी, उनी का प्रतिपादन उन्होंने किया, शेष का नहीं किया। समग्र का प्रतिपादन हो मी माता। भगवान महावीर ने भी उसी तत्व का प्रतिपादन किया जिनकी अपेक्षा उनके गामने धी। निष्कर्ष की भापा यह होगी कि मत्य का दर्शन दोनों गा मिन नहीं था, प्रतिपादन भिन्न भी था।
भगवान महावीर या नाधना-गागं भगवान् पाध्यं . माधना-मार्ग में गुद मित था। इतिहास की पापना है कि भगवान् पाम्य पद मापना के प्रयनक
। उन पहले व्यक्तिगत माधना चलती थी। उसे मामूहिक रूप भगवान् पान्वं ने दिया।
मायात्म पस्तुतः वैयक्तिका होता है। पर संघबर पनि हो मगना ? प्रत्य या साक्षात् करने के लिए अमीम स्वतन्त्रता अपेक्षित होती है। मंचीय जीवन में पाप्रास नहीं हो सकती । उगमें गोता चलता है। माप में समतोते के लिए को अदमा नहीं । व्यवहार विवादास्पद हो सकता है। गाय निदिबाद। riपिलाद हो, यहां मगोता आवाचनः हाहै। निविवाद लिए ममतोता पैसा?
मंध में सपहार होता और प्यार में समाजोना । शिर मनवा पाय ने पमानामा मुरपात पयों किया? भगवान मानी जो मान्यता परी पी? भगवान पान या मनुवादी नहीं थे, franो। भगवान पार पिपरामा पदपात किया जो पनाना उन दिसायं नीदा। {एर पप गायनामो गरी गम्मति पदों मिली।
भगवान गावीर माना पर बरेली मते माना । ए पनीले पदारे मा । हम १९८ जनशर दिया। दोनों को भी Firmanामा? भागामा, TERFre
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