________________
ध्यान, आसन और मौन
___मैं ध्यान-कोष्ठ में प्रवेश पा रहा था। स्थूल जगत् से मेरा सम्बन्ध विच्छिन्न हो चुका था। मेरा ध्येय था~महावीर की ध्यान-साधना का साक्षात्कार । सूक्ष्मजगत् से संपर्क साधकर मैं आचार्य कुंदकुंद की सन्निधि में पहुंचा। मैंने जिज्ञासा की, 'महाप्राज्ञ ! आपने लिखा है कि जो व्यक्ति आहार-विजय, निद्रा-विजय और आसन-विजय को नहीं जानता, वह महावीर को नहीं जानता, उनके धर्म को नहीं जानता। क्या महावीर के धर्म में ध्यान को कहीं अवकाश नहीं है ?'
आचार्य ने सस्मित कहा, 'यदि ध्यान के लिए अवकाश न हो तो आहार, निद्रा और आसन की विजय किसलिए ?'
'महाप्राज्ञ ! इसीलिए मेरी जिज्ञासा है कि आपने इनकी सूची में ध्यान को स्थान न देकर क्या उसका महत्त्व कम नहीं किया है ?'
'नहीं, मैं ध्यान का महत्त्व कम कैसे कर सकता हूं ?' 'तो फिर उस सूची में ध्यान का उल्लेख क्यों नहीं ?'
'वह ध्यान के साधनों की सूची है। आहार, निद्रा और आसन की विजय ध्यान के लिए है । फिर उसमें ध्यान का उल्लेख मैं कैसे करता ?'
'क्या ध्यान साधन नहीं है ?'
'वह साधन है । और आहार, निद्रा तथा आसन-विजय साधन का । साधन है।'
'यह कैसे ?'
'ध्यान आत्म-साक्षात्कार का माधन है। आहार, निद्रा और आसन का नियमन ध्यान का साधन है। भगवान् ने ध्यान की निर्बाध साधना के लिए ही इना नियमन किया था।'
'महाप्राज ! आप अनुमति दें तो एक बात और पूछना चाहता हूं ?'