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नारीक बन्ध-विमोचन
बाद नवसर मिला । काकमुख के संचालन में वत्त की सेना ने स्पल और जलदोनों लोर से चंपा पर लाक्रमण कर दिया। चंपा की सेना इस नाकस्मिक आक्रमण वेतनम हो गई। राजा उपस्थित नहीं था, वह युद्ध के लिए तैयार नहीं थी। फिर भी उसने प्रतिरोध किया किन्तु वत्स की सुसज्जित सेना का वह तम्बे समय तक नानना नहीं कर सकी । राजधानी के द्वार शनु सैनिकों के लिए खुल गए। काकमुख के प्रतिशोध की नाग वुझी नहीं। उसने चंपा को लूटने की स्वीकृति दे दी। वत्त के सैनिक चंपा पर टूट पड़े।
उन्होंने किसी भी प्रासाद को शेष नहीं छोड़ा। वे राजप्रासाद में भी पहुंच गए । काकमुख ने रानी धारिणी और उसकी कन्या वसुमती का अपहरण कर लिया।
सैनिक अपनी-अपनी बहादुरी वखानते लौट रहे थे। यह मानव-जाति का दुर्भाग्यपूर्ण इतिहास है कि मनुष्य दूसरे मनुष्यों को लूटकर प्रसन्नता का अनुभव करता है, दूसरों को शान्ति की भट्टी में सोंककर शान्ति का अनुभव करता है।
चंपा के नागरिकों ने क्या अपराध किया था? उन्होंने शतानीक या उसकी सेना का क्या विगाड़ा था ? उनका अपराध यही था कि वे विजेता देश के नागरिक नहीं थे, पराजित देश के नागरिक थे। शक्तिहीनता क्या कम अपराध है ? शक्तिहीन निरपराध को हमेशा अपराधी के कठघरे में खड़ा होना पड़ा है। दधिवाहन की सेना शतानीक की सेना के सामने अल्पवीर्य थी। शतानीक की सेना पूरी सज्जा के आथ आक्रामक होकर आई थी। दधिवाहन की सेना युद्ध के लिए तैयार नहीं थी। प्रमाद क्या कम अपराध है ? जो अपने दायित्व के प्रति जागरूक नहीं होता, उसे सदा यातनाएं झेलनी पड़ी हैं। _ विजेता का उन्माद शक्ति प्रदर्शन किए बिना कव शान्त होता है ? इस अ-हेतुक शक्ति-प्रदर्शन में हजारों हजारों नागरिकों को काल-राति भुगतनी पड़ी। फिर राजप्रासाद कैसे बच पाता और कैसे बच पाता उसका अन्तःपुर ? धारिणी और वसुमती को उसी मानवीय क्रूरता के अट्टहास का शिकार होना पड़ा।
काकमुख ने अपने पराक्रम का बखान इन शब्दों में किया, 'मैंने धन की ओर ध्यान नहीं दिया। मैं सीधा राजप्रासाद में पहुंचा। वहां मेरा कुछ प्रतिरोध भी हुआ। पर मैं उसे चीरकर अन्तःपुर में पहुंच गया और महारानी को ले आया। मुझे पत्नी की आवश्यकता है। यह मेरी पत्नी होगी। एक कन्या को भी ले आया हूं। यदि धन आवश्यक होगा तो इसे वेच दूंगा।' ___ नाकमुख की बातें सुन महारानी का सुकुमार मन उद्वेलित हो गया। उसके हृदय पर तीव्र आघात लगा । यह मूच्छित हो गई। वसुमती ने अपनी मां को सचेत करने का प्रयत्न किया । पर उसकी मूर्छा नहीं टूटी। उसके हृदय की गति व्या को रोकने में सक्षम होकर स्वयं रुक गई। काकमुख ने महारानी का बाहर