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श्रमणे महावीर
नौकर को भेजकर नाई को बुलाया। चंदना का सिर मुंडवा दिया। हाथ-पैरों में बेड़ियां डाल दीं। एक ओरे में बिठा, उसका दरवाज़ा बन्द कर ताला लगा दिया। दास-दासियों को कड़ा निर्देश दे दिया कि इस घटना के बारे में श्रेष्ठी को कोई कुछ भी न कहे और न चंदना की उपस्थिति का अता-पता बताए । यदि किसी ने इस निर्देश की अवहेलना की तो उसके प्राण सुरक्षित नहीं होंगे।
अपराह्न के भोजन का समय । श्रेष्ठी घर पर आया। भोजन के समय चंदना पास रहती थी। आज वह दिखाई नहीं दी। श्रेष्ठी ने पूछा, 'चंदना कहां है ?' सबसे एक ही उत्तर मिला, 'पता नहीं।' श्रेष्ठी ने सोचा, 'कहीं क्रीड़ा कर रही होगी या प्रासाद के ऊपरी कक्ष में बैठी होगी।'
श्रेष्ठी दूकान के कार्य से निवृत्त होकर रात को फिर घर आया। चंदना को वहां नहीं देखा । फिर पूछा और वही उत्तर मिला। श्रेष्ठी ने सोचा, जल्दी सो गई होगी। दूसरे दिन भी उसे नहीं देखा। श्रेष्ठी ने उसी कल्पना से अपने मन का समाधान कर लिया। तीसरे दिन भी वह दिखाई नहीं दी। तब श्रेष्ठी गम्भीर हो गया। उसने दास-दासियों को एकत्र कर कहा, 'बताओ, चंदना कहां है ?' वे सब दुविधा में पड़ गए । बताएं तो मौत और न बताएं तो मौत । एक ओर सेठानी का भय और दूसरी ओर श्रेष्ठी का भय । उन्हें सूझ नहीं रहा था कि वे क्या करें ? एक बूढ़ी दासी ने साहस बटोरकर सबकी समस्या सुलझा दी। जो मृत्यु के भय को चीर देता है, वह अपनी ही नहीं, अनेकों की समस्या सुलझा देता है । उस स्थविरा दासी ने कहा, 'चंदना इस ओरे में बन्द है।'
'यह किसने किया ?' संभ्रम के साथ श्रेष्ठी ने पूछा।
'इसका उत्तर आप हमसे क्यों पाना चाहते हैं ?' स्वर को कुछ उद्धत करते हुए स्थविरा दासी ने कहा ।.
श्रेष्ठी बात की गहराई तक पहुंच गया। उसने तत्काल दरवाजा खोला। वादलों की घोर घटा एक ही क्षण में फट गई । निरभ्र आकाश में सूर्य की भांति चंदना का भाल ज्योति विकीर्ण करने लगा।
'यह क्या हुआ, पुत्री ! मैंने कल्पना ही नहीं की थी कि तुम्हारे साथ कोई ऐसा व्यवहार करेगा?' .
'पिताजी ! किसी ने कुछ नहीं किया। यह सब मेरे ही किसी अज्ञात संस्कार का सृजन है।'
चंदना की उदात्त भावना और स्नेहिल वाणी ने श्रेष्ठी को शान्त कर दिया । वह बोला, 'मैं बहुत दुःखी हूं, पुत्री ! तुम तीन दिन से भूखी-प्यासी हो।'
'कुछ नहीं, अब खा लूंगी।'
श्रेष्ठी ने रसोई में जाकर देखा, भोजन अभी बना नहीं है। भात बचे हुए नहीं है। केवल उबले हुए थोड़े उड़द वच रहे हैं ।उसने शूर्प के कोने में उन्हें डाला और