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श्रमण महावीर
उन्हें भोजन देना चाहा। पर भगवान् उसे लिये बिना ही लौट आए । दूसरे दिन भी यही हुआ। तीसरे-चौथे दिन भी यही हुआ। लोगों में बातचीत का सिलसिला प्रारम्भ हो गया। भगवान् भिक्षा के लिए घरों में जाते हैं पर भोजन लिये बिना ही लौट आते हैं, यह क्यों ? यह प्रश्न बार-बार पूछा जाने लगा।
चार मास बीत गए । भगवान् का सत्याग्रह नहीं टूटा । कौशाम्बी के नागरिक यह जानते है कि भगवान् भोजन नहीं कर रहे हैं, पर यह नहीं जान पाए कि वे भोजन क्यों नहीं कर रहे हैं ? भगवान् इस विषय पर मौन हैं। उनका मौन-संकल्प दिन-दिन सशक्त होता जा रहा है। ___ सुगुप्त कौशाम्बी का अमात्य है । उसकी पत्नी का नाम है नंदा। वह श्रमणों की उपासिका है । भगवान् भिक्षा के लिए उसके घर पधारे । उसने भोजन लेने का बहुत आग्रह किया, पर भगवान् ने कुछ भी नहीं लिया। नंदा मर्माहत-सी हो गई। तव उसकी दासी ने कहा, 'सामिणी ! इतना दुःख क्यों ? यह तपस्वी कौशाम्बी के घरों में सदा जाता है पर कुछ लिये बिना ही वापस चला आता है। चार महीनों से ऐसा ही हो रहा है, फिर आप इतना दुःख क्यों करती हैं ?'
दासी की यह बात सुन उसका अन्तस्तल और अधिक व्यथित हो गया।
अमात्य भोजन के लिए घर आया । वह नंदा का उदास चेहरा देख स्तब्ध रह गया। उसने उदासी का कारण खोजा, पर कुछ समझ नहीं पाया।
नंदा की गंभीरता पल-पल बढ़ रही थी। उसकी आकृति पर भावों की रेखा उमरती और मिटती जा रही थी। अमात्य ने आखिर पूछ लिया, 'प्रिये ! आज इतनी उदासी क्यों है ?'
'बताने का कोई अर्थ हो तो बताऊं, अन्यथा मौन ही अच्छा है।' 'विना जाने अर्थ या अनर्थ का क्या पता लगे ?' 'क्या अमात्य का काम समग्र राज्य की चिन्ता करना नहीं है ?' 'अवश्य है ?' 'क्या आपको पता है, राजधानी में क्या घटित हो रहा है ?' 'मुझे पता है कि समूचे देश में और उसके आसपास क्या घटित हो रहा है ?'
'इसमें आपका अहं बोल रहा है, वस्तुस्थिति यह नहीं है। क्या आपको पता है, इन दिनों भगवान् महावीर कहां हैं ?'
'मैं नहीं जानता, किन्तु जानना चाहता हूं।' 'भगवान् हमारे ही नगर में विहार कर रहे हैं।' 'नय तो तुम्हें प्रसन्नता होनी चाहिए, उदासी क्यों?'
'भगवान की उपस्थिति मेरे लिए प्रसन्नता का विषय है, किन्तु यह जानकर * माग हो कि भगवान चार महीनों मे भूने हैं।'
पिया होगे ?'