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कहीं वंदना और कहीं बंदी
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'महाराज ! आप क्षमा करें। हमारी भूल हुई है, उसका कारण हमारा अज्ञान है। हमने जान-बूझकर ऐसा नहीं किया। ग्रामवासी एक साथ चिल्लाए।
___ भगवान् पहले भी शान्त थे, बीच में भी शान्त थे और अब भी शान्त हैं। ___ शान्ति ही उनके जीवन की सफलता है।'
६. भगवान् तोसली से प्रस्थान कर मोसली गांव पहुंचे। वहां संगम ने फिर उसी घटना की पुनरावृत्ति की। आरक्षिक भगवान् को पकड़कर राजकुल में ले गए। उस गांव के शास्ता का नाम था सुमागध । वह सिद्धार्थ का मिन्न था। उसने भगवान् को पहचाना और मुक्त कर दिया। उसने अपने आरक्षिकों की भूल के लिए क्षमा मांगी और हार्दिक अनुताप प्रकट किया।'
१०. भगवान् फिर तोसली गांव में आए। संगम ने कुछ औजार चुराए और भगवान् के पास लाकर रख दिए। आरक्षिक भगवान् को तोसली क्षत्रिय के पास ले गए । क्षत्रिय ने कुछ प्रश्न पूछे। भगवान ने कोई उत्तर नहीं दिया। क्षत्रिय के मन में संदेह हो गया। उसने फांसी के दंड की घोपणा कर दी।
जल्लाद ने भगवान के गले में फांसी का फंदा लटकाया और वह टूट गया। दूसरी बार फिर लटकाया और फिर टूट गया। सात बार ऐसा ही हुआ। आरक्षिक हैरान थे। वे क्षत्रिय के पास आए और वीती बात कह सुनाई। क्षत्रिय ने कहा, 'यह चोर नहीं है। कोई पहुंचा हुआ साधक है।' वह दौड़ा-दौड़ा आया। भगवान् के चरणों में नमस्कार कर उसने अपने अपराध के लिए क्षमा याचना की। __भगवान् अक्षमा और क्षमा-दोनों की मर्यादा से मुक्त हो चुके थे। उनके सामने न कोई अक्षम्य था और न कोई क्षम्य । वे सहज शान्ति की सरिता में निष्णात होकर विहार कर रहे थे।
१. नावश्यपणि , पूर्वभाग, पृ० ३१२। २. साधना का ग्यारहवां वर्ष । ३. बावश्यक पूणि, पूर्वभाग, पृ० ३१३ । ४. साधना का ग्यारहवां वर्ष । ५. लावायकणि, पूर्वभाग, पृ० ३१३ ।