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श्रमण मेहावीर के लक्षण बतलाते हैं कि यह चक्रवर्ती है और इसकी स्थिति से प्रकट होता है कि यह पदयात्री भिक्षु है। वह कुछ देर तक दिग्भ्रांत-सा खड़ा रहा। भगवान् ध्यान से विरत हुए। पुष्य अभिवादन कर बोला, 'भंते ! आप अकेले कैसे ?'
'इस दुनिया में जो आता है, वह अकेला ही आता है और अकेला ही चला जाता है, दूसरा कौन साथ देता है ?'
'नहीं, भंते ! मैं तत्त्व की चर्चा नहीं कर रहा हूं। मैं व्यवहार की बात कर रहा हूं।'
'व्यवहार की भूमिका पर मैं अकेला कहां हूं?' 'भंते ! आप परिवार-विहीन होकर भी अकेले कैसे नहीं हैं ?' 'मेरा परिवार मेरे साथ है।' 'कहां है भंते ! यही जानना चाहता हूं।'
'संवर (निर्विकल्प ध्यान) मेरा पिता है। अहिंसा मेरी माता है। ब्रह्मचर्य मेरा भाई है । अनासक्ति मेरी वहन है । शांति मेरी प्रिया है । विवेक मेरा पुत्र है । क्षमा मेरा पुत्री है। उपशम मेरा घर है। सत्य मेरा मित्र-वर्ग है। मेरा पूरा परिवार निरंतर मेरे साथ घूम रहा है, फिर मैं अकेला कैसे ?' ___भंते ! मुझे पहेली में मत उलझाइए। मैं अपने मन की उलझन आपके सामने रखता हूं, उस पर ध्यान दें। आपके शरीर के लक्षण आपके चक्रवर्ती होने की सूचना देते हैं और आपकी चर्या साधारण व्यक्ति होने की सूचना दे रही हैं। मेरे सामने आज तक के अजित ज्ञान की सचाई का प्रश्न है, जीवन-मरण का प्रश्न है । इसे आप सतही प्रश्न मत समझिए।' ।
'पुष्य ! बताओ, चक्रवर्ती कौन होता है ?' 'भंते ! जिसके आगे-आगे चक्र चलता है।' 'चक्रवर्ती कौन होता है ?'
'भंते ! जिसके पास बारह योजन में फैली हुई सेना को त्राण देने वाला छत्ररत्न होता है।'
'चक्रवर्ती कौन होता है ?'
'भंते ! जिसके पास चर्मरत्न होता है, जिससे प्रातःकाल बोया हुआ बीज शाम को पक जाता है।'
'पुष्य ! तुम ऊपर, नीचे, तिरछे-कहीं भी देखो, धर्म का चक्र मेरे आगेआगे चल रहा है । आचार मेरा छत्नरत्न है, जो समूची मानव-जाति को एक साथ त्राण देने में समर्थ है । भावना योग मेरा चर्मरत्न है। उसमें जिस क्षण बीज बोया जाता है, उसी क्षण वह पक जाता है। क्या मैं चक्रवर्ती नहीं हूं ? क्या तुम्हारे