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भय की तमिया : अभय का आलोक
एक कर पार कर रहे हैं। नात्म-दर्शन या सत्य का साक्षात्कार करने से पूर्व प्रत्येक माधक को ये घाटियां पार करनी होती हैं।
भगवान् बुद्ध ने भी इन घाटियों को पार किया था। वे वैशाखी पूर्णिमा को ध्यान कर रहे थे। उन्हें कुछ अशान्ति का अनुभव हुना। उस समय उन्होंने संकल्प किया-'मैं आज बोधि प्राप्त किए बिना इस आसन से नहीं उलूंगा।' जैसे-जैसे उनकी एकाग्रता मागे बढ़ी, वैसे-वैसे उनके सामने भयानक आकृतियां उभरने लगी-जंगली जानवर, अजगर और राक्षस । इन आकृतियों ने बुद्ध को काफी कप्ट दिया। उनकी धृति अविचल रही। मन शान्त हुआ। उन्हें बोधि प्राप्त हो गई।
यह परमात्मपद तक पहुंचने की आध्यात्मिक प्रक्रिया है । अतः कोई भी महान् साधक इसका अतिक्रमण नहीं कर पाता।
२. यह साधना का दूसरा वर्ष है । भगवान् महावीर दक्षिण वाचाला में उत्तर पाचाला की ओर जा रहे है । उन्होंने फनकायल आश्रम के भीतर से जाने वाले मार्ग को चुना है । ये कुछ आगे बढ़े । रास्ते में ग्वाले मिले। उन्होंने कहा, 'भंते ! इधर से गत जाए।'
गया यह मार्ग उत्तर वाचाला नी भोर नहीं जाता ?' भते ! जाता है। 'पया यह बाहर ने जाने वाले मार्ग से सीधा नहीं है ?'
ते ! मीधा है।' "फिर इन मार्ग से मयों नहीं जाना चाहिए मुझे ?' 'भंते ! यह निरापद नहीं है।' 'फिसफा घर है इस मार्ग में ?' "भते ! दम मार्ग के पार चंटकौशिया नाम का नांप रहता है। यह दृष्टिविष
जो लादमी उसकी दृष्टि के सामने ला गाता है, वह भस्म हो जाता है। काया भाप वापस चलिए।'
महावीर का गन पुलकित हो गया। पंजभर और मती-योनों की कसोटी पर अपने शो करना चाहते थे। यह अवसर मरजही उनके हाथ आ गया। उन्होंने माधागो भाषा में गोगा-'गुर जात्मा जिनके प्रति विश्वस्त है, उनमें अधिक पुमा भय का मान नहीं है। पर रिमो भयभीत गरे अधिन नय कामासानगी।
देनारेमाने दोहोर गाए । महावीर में पागोदा པཎ1-T:ན པ ་ : - : ་ ཡ ་ ་ ོཔ༑ པ་ན་
योगी
ने किया।