Book Title: Sharavkachar Sangraha Part 3
Author(s): Hiralal Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 24
________________ विषय-सूची जीव ईश्वर-प्रेरित होकर सुख-दुःखादि भोगता है, इस मतका निराकरण बौद्धोंके क्षणिकवाद और सांख्योंके नित्यवादका निराकरण जैनमतानुसार जीवके स्वरूपका निरूपण मिथ्यात्व, अविरति आदि कर्म-बन्धके कारणोंका निरूपण गुप्ति, समिति आदि संवरके कारणोंका निरूपण चतुर्गति - गमनके कारणोंका निरूपण अहिंसादि व्रतोंके अतीचारोंका निरूपण सम्यक्त्व, जिन-पूजन, जिन-स्तवन और मौनव्रतके अतीचार अहिंसादि व्रतोंकी भावनाओं का वर्णन सामायिकके बत्तीस दोषोंका निरूपण वन्दना बत्तीस दोषोंका निरूपण मिथ्यात्व अविरति आदि कारणोंसे जीव संसारमें बँधता है और सम्यक्त्व विरति आदिके द्वारा जीव मुक्त होता है सम्यग्दर्शनकी महिमा का वर्णन सम्यग्दर्शनके आठ अंगोंका निरूपण सम्यग्दर्शन ही मोक्षका प्रधान कारण है २०. श्रावकाचारसारोद्धार ग्रन्थकारका मंगलाचरण भरतक्षेत्र, मगध देश और श्रेणिक राजाका वर्णन भगवान् महावीरका विपुलाचल पर पदार्पण और वन्दनार्थ श्रेणिकका गमन श्रेणिक-द्वारा भगवान्का स्तवन, धर्म-पृच्छा और गौतमस्वामीके द्वारा धर्मका निरूपण अपने लिए प्रतिकूल कार्यका दूसरेके लिए आचरण नहीं करना ही धर्मका प्रथम चिह्न है धर्मकी महिमाका निरूपण पुण्यके सुफलोंका और पापके दुष्फलोंका निरूपण सद् गुरुका स्वरूप और अन्तरंग - बहिरंग परिग्रहका निरूपण सम्यग्दर्शन की प्राप्ति के अन्तरंग और बहिरंग कारणोंका निरूपण सम्यग्दर्शनके दश भेदों का स्वरूप - वर्णन प्रशम, संवेगादि गुणों का वर्णन निःशंकित अंगका और उसमें प्रसिद्ध अंजनचोरके कथानकका वर्णन निःकांक्षित अंगका और उसमें प्रसिद्ध अनन्तमतीके कथानकका वर्णन निर्विचिकित्सा अंगका और उसमें प्रसिद्ध उद्दायन राजाके कथानकका वर्णन अंगका और उसमें प्रसिद्ध रेवती रानीके कथानकका वर्णन उपगूहन अंगका और उसमें प्रसिद्ध जिनेन्द्रभक्त सेठके कथानकका वर्णन स्थितिकरण अंगका और उसमें प्रसिद्ध वारिषेणमुनिके कथानकका वर्णन वात्सल्य अंगका और उसमें प्रसिद्ध विष्णुमुनिके कथानकका वर्णन प्रभावना अंगका और उसमें प्रसिद्ध वज्रकुमार मुनिके कथानकका वर्णन Jain Education International For Private & Personal Use Only २३ २४८ " २४९ २५० २५१ " २५३ २५५ २५६ २५७ २५९ २६० २६१ २६२ २६३-३६८ २६३ २६४ २६७ २६९ २७१ २७२ २७३ २७७ २७८ २७९ २८० २८१ २८५ २९० २९४ २९९ ३०२ ३०८ ३१६ www.jainelibrary.org

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