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विषय-सूची
जिन-बिम्ब निर्माण कराके प्रतिदिन पूजन करनेका उपदेश पर्व दिनों में उपवास करनेका उपदेश और फल-विशेषका निरूपण
रात्रि भोजन करने और नहीं करनेके फलका वर्णन धर्म सेवनमें विलम्ब न करनेका उपदेश
धर्म सेवनसे रहित मनुष्य मृतकके समान है
१८. व्रतसार श्रावकाचार
सम्यक्त्व की महत्ता और उसका स्वरूप अष्ट मूलगुणों का वर्णन
अभक्ष्य वस्तुओंके भक्षणका निषेध श्रावकके बारह व्रतोंका निर्देश
पर्वके दिनोंमें उपवास करनेका विधान
पात्रोंको दान देनेका, सदा पंच नमस्कार मंत्र स्मरण करनेका एवं प्रतिष्ठा यात्रादि
करनेका उपदेश
१९. व्रतोद्योतन श्रावकाचार
प्रातः उठकर शरीर शुद्धि करके जिन-बिम्ब दर्शन एवं पूजन करनेका उपदेश ऋतुमती स्त्रीके जिन-पूजन करनेका दुष्फल
जीव- रक्षाका विचार न करके पीसना - कूटना आदि गृह कार्य करनेवाली स्त्रीके दुष्फलों का वर्णन
कन्दमूल, पत्र, पुष्पादिके भक्षणका निषेध
राम-भाव के बिना जिन-पूजन, शास्त्र- पठनादि सब व्यर्थ हैं। दुराचारिणी स्त्री दीर्घकाल तक संसारमें परिभ्रमण करती है पूर्व भवमें मुनि - निन्दादि करनेवाली स्त्रियोंके नामोंका उल्लेख यति, ऋषि, अनगार आदिका स्वरूप
कुटिल मनोवृत्तिवाला साधु भी भव्यसेनके समान दुःख पाता है अभक्ष्य भक्षण, रात्रि-भोजन, कूट-साक्षी आदिके दुष्फलोंका वर्णन क्रोधादि कषायोंके फलसे जीव व्याघ्र आदि होता है पंचेन्द्रियोंके विषयों तथा सप्त व्यसनोंके सेवनके दुष्फलोंका वर्णन मिश्रमिध्यादृष्टि पुरुष भी दीर्घकाल तक संसारमें परिभ्रमण करता है तीन दिन तक मुनिकी परीक्षा करके सम्यग्दृष्टि नमस्कार करे शिक्षा देने के योग्य एवं अयोग्य व्यक्तिका वर्णन
पंच अणुव्रतोंका और तीन गुणव्रतों का वर्णन चार शिक्षाव्रतोंका वर्णन
मुनि ग्रहण नहीं करनेके योग्य अन्नका वर्णम मायावी मुनि महापापी है
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