Book Title: Shantilal Vanmali Sheth Amrut Mahotsav Smarika
Author(s): Dalsukh Malvania
Publisher: Sohanlal Jain Vidya Prasarak Samiti

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Page 11
________________ 'सन्निष्ठ समाजजसेवी' श्री शान्तिभाई का सम्मान सेवानिष्ठ, मेरे सहृदयी परममित्र सौजन्यमूर्ति श्री शान्तिभाई शेठ प्रो० दलसुख मालवरिगया मानद निदेशक-श्री द० ला० भारतीय विद्या-मंदिर अहमदाबाद सेवानिष्ठ सौजन्यमूर्ति श्री शान्तिलाल शेठ का जन्म १९३५ से १६४४ तक विविध धार्मिक और सामाजिक सौराष्ट्र के जेतपुर में तारीख २१-५-१९११ में शेठ वनमाली संस्थाओं में सेवारत रहकर ग्रन्थों का संकलन और संपादन दास के श्रीमती मणिबहन की कोख से हआ। प्राथमिक और किया। उनके साक्षात्कार, जवाहर-ज्योति, धर्म और धर्ममाध्यमिक शिक्षा गुजराती माध्यम से जेतपुर में ही हुई। नायक, ब्रह्मचारिणी, जवाहर-व्याख्यान-संग्रह. जैन प्रकाश तदनन्तर १६२७ से १९३१ तक श्री अ० भा० श्वे० स्था० की उत्थान-संपूर्ति, अहिंसा-पथ आदि पत्रिका और ग्रन्थ जैन कॉन्फ्रेन्स द्वारा स्थापित जैन ट्रेनिंग कॉलेज में मेरे साथी प्रकाशित हए हैं। रहे और बीकानेर-जयपुर ब्यावर में संस्कृत-प्राकृत का १६४५ से.१९५० तक श्री पार्श्वनाथ विद्याश्रम, बनारस अध्ययन किया और कॉलेज की ओर से 'जैन विशारद' की विश्वविद्यालय में संचालक के रूप में सेवा दी और पं० उपाधि प्राप्त की और साथ ही जैन-न्याय की परीक्षा- सुखलालजी के संपर्क से मन में रही हुई 'समन्वय-भावना' 'न्यायतीर्थ' उत्तीर्ण की। जैन शास्त्रों का विशेष अध्ययन विशेष दृढ़ हुई। वहीं रहकर 'जैन कल्चरल रिसर्च सोसायटी' करने के लिए हम दोनों अहमदाबाद में पं० श्री बेचरदासजी की स्थापना और संचालन में योगदान दिया और कई जैन के पास रहे और वहाँ प्रज्ञाचक्षु पं० सुखलालजी तथा आचार्य संस्कृति, धर्म और दर्शन विषयक पुस्तिकाओं का सम्पादन मुनि श्री जिनविजयजी के विशेष संपर्क में आये। पू० गांधीजी, किया। आ० काकासाहेब, आ० कृपलानीजी आदि राष्ट्रनेताओं १९५५ से १९६५ तक श्री स्था० जैन कॉन्फ्रेन्स के मंत्री के संपर्क में आने का भी यहाँ अवसर मिला। उसके बाद रहे और दिल्ली में जैन-प्रकाश (हिन्दी-गुजराती) का संपा१९३१ से १६३४ तक विश्वकवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर के विश्व- दन किया। इसी बीच जैन गुरुकुल, ब्यावर में रहकर समाजभारती शान्ति-निकेतन में रहकर आचार्य मुनि जिनविजयजी सेवा की। . एवं महामहोपाध्याय श्री विधूशेखर भट्टाचार्यजी से जैन-धर्म १९५६ से १९६६ तक आ० काकासाहेब कालेलकर के और बौद्ध-धर्म का तुलनात्मक अध्ययन किया। परिणाम- साथ रहे और राष्ट्र-सेवा और हरिजन-सेवा आदि कार्यों में स्वरूप 'धम्मसुत्तं' के नाम से जैन-बौद्ध सूक्तों का संकलन रत रहे और गांधी हिन्दुस्तानी साहित्य सभा, मंगल-प्रभात, किया जो आगे जाकर पं० बेचरदासजी द्वारा संपादित होकर श्रम साधन-केन्द्र, विश्व समन्वय केन्द्र तथा गांधी विचारधारा 'महावीर-वाणी' के नाम से प्रकाशित हुआ । यहाँ भी हमारा को पुष्ट करने वाली अनेक सर्वोदयी संस्थाओं में योगदान देने साथ था। का अवसर मिला। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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