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मैंने कई बार कहा है कि ढाई हजार बरस पहले अहिंसा, संयम और तपस्या का सन्देश मनुष्य आति के सामने रखकर भगवान् महावीर ने सिद्ध किया कि वे सच्चे अर्थ में 'आस्तिकशिरोमणि' हैं । ईश्वर या शास्त्रों पर विश्वास रखना सच्ची आस्तिकता नहीं है। सच्ची आस्तिकता तो यह है कि मनुष्य के हृदय पर विश्वास किया जाय आस्तिकता का लक्षण यह है कि मनुष्य विश्वास करे कि किसी-न-किसी दिन मनुष्य अपना स्वार्थी, ईर्ष्यालु या क्रूर स्वभाव छोड़कर समस्त मानव जाति का एक विश्व-कुटुम्ब स्थापित करेगा और यह कुटुम्ब भाव बढ़ाते-बढ़ाते भले-बुरे सब प्राणियों का उसमें अन्तर्भाव करेगा । आजकल के युग में आस्तिकता इस बात में होगी कि हम विश्वास करें कि रूस और अमेरिका दोनों किसी-न-किसी दिन मानवता के सिद्धान्त को सर्वोपरि रूप में स्वीकार करेंगे। आस्तिकता का लक्षण है कि हम हृदय से मानें कि हिन्दू और मुसलमान भाई-भाई होकर ही रहेंगे और हम मानें कि पाकिस्तान की नीति भी किसी-न-किसी दिन सुधर जायगी।
आज विनोबाजी जो भूदान सर्वोदय का काम कर रहे हैं, वह आस्तिकता का काम है। उनका विश्वास है कि आज के स्वार्थी युग में भी मनुष्य अपना सर्वस्व दे सकता है।
आज के भारत की अन्तर्राष्ट्रीय नीति आस्तिकता का
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त्रिवेणी समन्वय
आस्तिक-शिरोमणि भगवान महावीर और उनकी अहिंसा, संयम और तप की प्रस्थानत्रयी
काकासाहेब कालेलकर
सर्वोत्तम नमूना है अविश्वास और ईर्ष्या के इस जमाने में भारत सब-के-सब राष्ट्रों पर विश्वास रखने को तैयार है। इन सब राष्ट्रों का इतिहास और उनकी करतूतें हम नहीं जानते, सो बात नहीं । हम अपने दोष भी कहाँ नहीं जानते ? हम दुनिया से अलग थोड़े ही हैं तो भी हम विश्वास करते हैं कि मनुष्य कल्याण की ओर प्रस्थान अवश्य करेगा ।
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आज लोग दुनिया के सामने मानवीय प्रेम का, विश्वकुटुम्बका आदर्श रखते हुए संकोच का अनुभव करते हैं । सिर्फ अहिंसक सह-जीवन ( peaceful co-existence ) या सहचार की बातें करके ही संतोष मानते हैं जबकि भगवान् महावीर ने प्राणिमात्र के प्रति अहिंसा का सब प्राणियों के एक परिवार होने का सन्देश दुनिया के सामने रखा और विश्वास किया कि इसे मनुष्य जाति अवश्य स्वीकार करेगी। इसीलिए मैं भगवान् महावीर को आस्तिक-शिरोमणि कहता हूँ ।
सनातनी लोग उपनिषद् ब्रह्मसूत्र और भवगद्गीता को 'प्रस्थानत्रयी' कहते हैं। तीनों में जो पुरुष एकवाक्यता या समन्वय सिद्ध कर दिखाता है, उसे 'आचार्य' कहते हैं। यह पुरानी बात हो गयी । अनेक आचार्यों ने अपने-अपने ढंग से 'प्रस्थानत्रयी' की एकवाक्यता सिद्ध कर दिखायी । इस जमाने में कई विद्वानों ने इन सब आचायों के बीच भी सामंजस्य
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