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विहार करके जनता को स्वतन्त्रता का सन्देश सुनाया और के देवताओं की स्तुति की है, प्रार्थना की है और अपनी आन्तर और बाह्य बन्धनों से अनेकों को मुक्त किया । आशा-निराशा को व्यक्त किया है। इन्हीं मन्त्रों के आधार
से यज्ञों की सृष्टि हुई है। अतएव मोक्ष या निर्वाण की, परिस्थिति
आत्यन्तिक सुख की, पुनर्जन्म के चक्र को काटने की बात को भगवान् महावीर को किस परिस्थितिका सामना करना । उसमें अवकाश नहीं। धर्म, अर्थ, और काम-इन तीन पड़ा-उसका संक्षेपसे कथन आवश्यक है। ब्राह्मणों ने परुषार्थों की सिद्धि के आसपास ही धार्मिक अनुष्ठानों की धार्मिक अनुष्ठानों को अपने हाथ में रख लिया था। मनुष्य सष्टि थी। और देवों का सीधा सम्बन्ध हो नहीं सकता था जब तक बीच इस परिस्थितिका सामना भगवान् महावीर से भी पहले में पुरोहित आकर उसकी मदद न कर दे। एक सहायक के शरू हो गया था, जिसका आभास हमें आरण्यकों और प्राचीन तौर पर यदि वे आते तो उसमें आपत्ति की कोई बात न थी, उपनिषदों से भी मिलता है। किन्तु भगवान् महावीर और किन्तु अपने स्थिर स्वार्थों की रक्षा के लिए प्रत्येक धार्मिक बुद्ध ने जो क्रान्ति की और उसमें जो सफलता पाई वह अद्भुत्त अनुष्ठानों में उनकी मध्यस्थता अनिवार्य कर दी गई थी। है। इसीलिये तत्कालीन इन्हीं दो महापुरुषों का नाम आज अतएव एक ओर धार्मिक अनुष्ठानों में अत्यन्त जटिलता कर तक लाखों लोगों की जबान पर है। दी गई थी कि जिससे उनके बिना काम ही न चले और दूसरी ओर अपने स्वार्थ की सिद्धि के लिये अनुष्ठान विपुल सामग्रीसे स
२ संक्षिप्त चरित्र सम्पन्न होनेवाले बना दिये गये थे जिससे उनको काफी अर्थ- भगवान महावीर का जन्म क्षत्रियकुंडपुर में (वर्तमान प्राप्ति भी हो जाय । ये अनुष्ठान ब्राह्मण जाति के अलावा और बसाड़) पटना से कुछ ही माइल की दूरी पर हुआ था। उसके कोई करा न सकता था। अतएव उन लोगों में जात्यभिमान की पिता का नाम सिद्धार्थ और माता का नाम त्रिशला था। मात्रा भी बढ़ गई थी। मनुष्यजातिकी समानता और एकता उनके पिता ज्ञातवंश के क्षत्रिय थे और वे काफी प्रभावशाली के स्थान में ऊँच-नीच भावना के आधार पर जातिवाद का व्यक्ति होंगे, क्योंकि उनकी पत्नी त्रिशला वैशाली के अधिभूत खड़ा कर दिया गया था और समाज के एक अंग शूद्र को पति चेटक की बहन थीं। इसी चेटक से सम्बन्ध के कारण धार्मिक आदि सभी लाभों से वंचित कर दिया गया था। तत्कालीन मगध, वत्स, अवन्ती आदि के राजाओं के साथ भी
उच्च जातिने अपने गौर वर्ण की रक्षा के लिये स्त्रियों उनका सम्बन्ध होना स्वाभाविक है, क्योंकि चेटक की की स्वतन्त्रता छीन ली थी, उनको धार्मिक अनुष्ठान का पत्रिओं का ब्याह इन सब राजाओं के साथ हुआ था । चेटक स्वातंत्र्य न था। अपने पतिदेव की सहचारिणी के रूप में ही की एक पुत्री की शादी भगवान महावीर के बड़े भाई के साथ धार्मिक क्षेत्र में उनको स्थान था।
हुई थी। संभव है, भगवान् के अपने धर्म के प्रचार में इस गणराज्यों के स्थानमें व्यक्तिगत स्वार्थों ने आगे आकर सम्बन्ध के कारण भी कुछ सहूलियत हुई हो। वैयक्तिक राज्य जमाने शुरू किये थे और इस कारण राज्यों माता-पिता ने उनका नाम वर्धमान रक्खा था, क्योंकि में परस्पर शंका का वातावरण फैला था।
उनके जन्म से उनकी सम्पत्ति में वृद्धि हुई थी। किन्तु
इसी सम्पत्ति की निःसारता से प्रेरित होकर उन्होंने त्याग धर्म-क्रान्ति
और तपस्या का जीवन स्वीकार किया। उनकी घोर धर्म का मतलब या धार्मिक अनुष्ठानों का मतलब इतना अत्युत्कट साधना के कारण उनका नाम 'महावीर' हो गया ही था कि इस संसार में जितना और जैसा सुख है उससे और उसी नाम से वे प्रसिद्ध हुए।वर्धमान नाम लोग भूल भी अधिक यहाँ और मृत्यु के बाद वह मिले। धार्मिक साधनों में गये । मुख्य 'यज्ञ' था, जिसमें वेदमन्त्र के पाठ के द्वारा अत्यधिक भगवान महावीर के माता-पिता पार्श्वनाथ के अनुयायी मात्रा में हिंसा होती थी। इसकी भाषा संस्कृत होने के कारण थे। अतएव बालकपन मे ही उनका संसर्ग त्यागी महात्माओं लोकभाषा प्राकृत का अनादर स्वाभाविक हुआ। वेद के से हआ, यही कारण है कि उनको सांसारिक वैभवों की मन्त्रों में ऋषियों ने काव्यगान किया है, सुखसाधन जुटा देने अनित्यता और निस्सारता का ज्ञान हुआ। संसार की वाली प्रकृति को धन्यवाद दिया है। ऋषियों ने नाना प्रकार अनित्यता और अशरणता के अनुभव ने ही उनको भी त्याग
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