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गरीब और प्रजा शाहूकार की अजब संगीति । दिन में सूर्य का प्रताप और रात्रि में चन्द्र की शीतलता का अनुभव । ऊंटगाड़ी और गहरे कुँए के मीठे पानी की विचित्रता, फुटबाल-खेल और रेत के टीलों में भ्रमण का आनंद । बीकानेर से जयपुर में स्थानांतर। 'जैन-ज्योति' हस्तलिखित मासिक का संपादन । चिंतन-मनन के नाम से निद्राधीन की प्रक्रिया। पितृहृदय दुर्लभजीभाई का वात्सल्यप्रेम । अध्ययन की योग्य व्यवस्था । जयपुर में जैन-फुटबाल कल्ब की स्थापना। श्री सिद्धराजजी ढढा का परिचय । तीनों संप्रदायों में एकता। समन्वयमूर्ति चिन्मयसुखजी का स्नेहाकर्षण । न्यायमध्यमा के लिए शिवपुरी में श्री विद्याविजयजी म. की समय सूचकता । स्नेह-सम्मेलन । मिस क्राउजे (सुभद्रादेवी) का सन्मान। स्काउट-प्रवृत्ति में रस । श्री बोरदियाजी का छात्र प्रेम। जयपुर के दर्शनीय स्थानों में भ्रमण । इंदौर में 'न्यायतीर्थ' की परीक्षा । साधुओं में भी मनमुटाव का दर्शन। आत्मार्थी मोहनऋषिजी, एवं पू० चैतन्यजी का अपूर्व धर्म स्नेह सद्भाव। ब्यावर में साम्प्रदायिकता के दर्शन से खिन्नता। अहमदाबाद में श्री दलसुखभाई के साथ पं. बेचरदासजी के पास प्राकृत-भाषा का अध्ययन । 'स्वयंपाक' का अभ्यास । स्वयंसेवा का आदर्श। गुजरात विद्यापीठ में पू. गांधीजी, आ. काकासाहेब, आ. कृपलानीजी, पं. सुखलालजी, आ० जिनविजयजी, रसिकभाई, श्री रामनारायण पाठक, बौद्ध पंडित श्री धर्मानंद कौशंबी, गोपालदास पटेल आदि का दर्शन-परिचय । सत्याग्रह में सक्रिय भाग। भीतपत्र लिखना । वानर सेना में भर्ती का विचार । विद्याध्ययन का ठप्प हो जाना । पं० सुखलालजी की प्रेरणा से बनारस एवं शान्तिनिकेतन के लिए प्रस्थान । श्री दलसुखभाई और मैं—दो सन्निष्ठ मित्र, मानों 'द्वैत में अद्वैत' का अनुभव।
शान्तिनिकेतन में-१९३०-१९३४
शान्तिनिकेतन में न्यायतीर्थ की उपाधि से विद्याभवन में प्रवेश । मिश्रित भोजनालय के कारण 'क्षीरान्न' का प्रयोग। आ० विधुशेखरजी, आ० क्षितिमोहन सेन, सी० एफ० एण्ड ज, आ० नंदलाल बोस तथा दक्षिणामूर्ति के छात्रों का परिचय । पढ़ने की उच्च व्यवस्था । बंगाली एवं सिंहली लिपि का अभ्यास । पू० गुरुदेव की 'चंडालिका' के आधार पर 'साक्षात्कार' नाटिका की रचना । जैन-बौद्ध, हिन्दूधर्म का तुलनात्मक अध्ययन। आ. जिनविजजी और श्री हजारीप्रसादजी का संपर्क । सत्यं शिवं सुन्दर' का जीवन में प्रभाव। विश्वात्मवय की भावना जैन छात्रालय की व्यवस्था । शाकाहारी भोजनालय की स्थापना और सफलता। 'धम्मसुत्तं' का संकलन । महावीर-अंक का संपादन। पं. सुखलालजी के पास 'धर्मवीर महावीर और कर्मवीर कृष्ण' के लेखन के लिए बनारस जाना। पंडितजी के अगाध पांडित्य से प्रभावित । अपने लिए कंजूस और दूसरों के लिए दानी-ऐसे महान् 'ज्ञानतपस्वी' के दर्शन से कृतकृत्य । शान्तिनिकेतन के ४ वर्ष-जीवन के विकास-वर्ष। श्रद्धेय गुरुदेव के विश्व-भारती शान्तिनिकेतन में विश्व-कृटुम्ब की भावना जो पैदा हुई वह पं. सुखलालजी द्वारा पुष्ट हुई और अन्त में वही पू० काका साहेब की प्रेरणा से विश्व-समन्वय के रूप में जीवन में परिणत हुई—यह मेरे जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि । यहीं खुशालदास तथा मनोरमा-बहिन-'मयूख'–के आतिथ्य से संतोष और वह साढूभाई के रूप में परिणत ।
शान्तिनिकेतन में प्रथमवार ही राष्ट्रनेता पं० जवाहरलाल नेहरू एवं श्रीमती इंदिरा गांधी का दर्शन-परिचय। पं० जयदेव की जन्म-भूमि-तेंदूली में उत्सव का आनंद । पवित्र नदी-स्नान । लौटते समय भयंकर भूकंप का अनुभव । भूकंप-पीड़ितों की सहायतार्थ पंडितजी यहां से सीधे मोंधीर-बिहार में गये थे-ऐसा स्मरण है।
संसार-यात्रा-१६३५-१६३७
१९३३-३४ में अजमेर साधु-सम्मेलन का आयोजन । साधुओं में भी साम्प्रदायिकता का प्रकर्ष। मतभेदों के निवारणार्थ धर्मवीर श्री दुर्लभजीभाई का सर्वस्व जीवन-समर्पण । श्री मिश्रीमल जी० का
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