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'शान्ति यात्रा' के कुछ स्मरणीय और प्रासंगिक शब्दचित्र
( 1 ) दान में भी अनाशक्ति डॉ० युद्धवीरसिंह दिल्ली के सामाजिक एवं राजकीय क्षेत्र में पू० गांधी जी के खादी, नशाबंदी आदि रचनात्मक सेवा कार्य करने करवाने के लिए सदा तत्पर रहते थे। उन्होंने दिल्ली खादी ग्रामोद्योग बोर्ड भी स्थापित किया था। मैं भी उसका एक सदस्य था। अंदर चर्चा का प्रचार करना भी बोर्ड का एक कार्यक्रम था। डॉ० की प्रेरणा से राजघाट पर हमारी संस्था में श्रमसाधना केन्द्र चालू किया और अंबर चर्चा चलाने की प्रवृत्ति भी चालू की। एक सेवाभावी संचालक के सहकार से यह प्रवृत्ति चल पड़ी। अनेक खादीप्रेमी भाई-बहिन अंबर चर्चा चलाने के लिए आने लगे। हमारी खादी कुटीर छोटी पड़ने लगी। रविवार के दिन एक सर्वोदयी सज्जन श्री नायबराज जी कालरा - जो नियमित अंबर चर्खा चलाने आते थे कहने लगे ये पाँच सौ रुपये लो और इस कुटीर को बड़ी बना लो।' मैंने सोचा कि यह भाई चर्खा चलाकर कुछ कमाई करते हैं और इतना दान देना क्यों चाहते हैं ? ये भाई गंभीर हृदय के गर्भश्रीमंत भी हैं - यह मैंन हीं जानता था। मैंने जवाब दिया कि - अभी यह रकम अपने पास रखिए, जरूरत पड़ने पर मैं स्वयं मांग लूंगा। दूसरे रविवार को कालराजी फिर मेरे पास आये और पाँच हजार मेरे हाथ में थमा दिये। मैंने वही उत्तर दिया और कहा कि अगले रविवार को आपके पूज्य पिताजी से मिलकर निर्णय करेंगे। तीसरे रविवार को बहुत ही वर्षा हुई थी लेकिन शाम को आकाश साफ हो गया। श्री कालरा जी अपने परिवार के सभी (सदस्यों करीब-करीब १७ भाई-बहन ) के साथ आये हम सब ऑफिस के बड़े हाल में बैठे। सर्वप्रथम मैंने वयोवृद्ध विनयमूर्ति श्री रामनारायण जी (कालरा
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जी के पिताजी) को प्रणाम कर कहा कि आपके नायबराज जी इस श्रमसाधक केन्द्र को पाँच हजार दे रहे हैं-उसमें आपकी सहमति है ? उन्होंने हाथ जोड़कर इतना ही कहा कि भगवान का शुक्रिया है कि भगवान ने उसे सन्मति दी। मुझे खुशी है और मैं भी अनुमोदन के रूप में ५००० देता हूँ। फिर तो पू० माताजी, बड़े भाई, उनकी धर्मपत्नी, छोटे भाई, भानजे आदि प्रत्येक ने सभी ने - ५०००/- दान देने का तांता लग गया । और ५०००० की दानराशि हुई। मैं तो दिङ्मूढ़ होकर देखने-सुनने लगा। यह हृदयद्रावक देवदृश्य देखकर मेरे रोमांच - रोंगटे खड़े हो गये ।
मैंने दो टूक शब्दों में इतना ही कहा कि आज वर्षा हुई है और यहाँ पर निष्काम सेवा और निष्काम निर्लोभवृत्ति की-श्रम और श्री की वर्षा हो रही है ! धन्य है 'अहोदान' की वृत्ति और प्रवृत्तिको मैंने उन सभी का ही इस दानराशि यहाँ कहीं शिलालेख या नामोल्लेख नहीं होगा - ऐसी हमारी प्रणाली है ऐसा कह कर उनका साधुवाद किया और अगले रविवार को सायं पाँच बजे श्री काका साहब के चरणों में श्री - फल समर्पित करने का कार्यक्रम निश्चित हुआ ।
चौथे रविवार के पाँच बजे की वह धन्य घड़ी आ गई। वही समस्त कालरा कुटुंब के भाई-बहिन एक बाल में बादाम का, द्राक्ष का, अखरोट, काजू एवं फलों के साथ ५००० रुपये लेकर पूज्य श्री की सेवा में सभी उपस्थित हुए सब । वृत्तांत आघन्त कह सुनाया । पू० काका साहब, सुश्री सरोज बहिन आदि सब आश्रमवासी यह वृत्तांत सुनकर अश्चर्यचकित हुए। पू० काका साहव ने कहा- पहिले यह बात क्यों कही नहीं ? मैंने मौन भाषा में 'यह आप की ही कृपा का परिणाम हैं अपने भाव व्यक्त किये। इन ५० हजार
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