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१. सर्वोपयोगी सन्मति साहित्य प्रकाशन योजना
मेरी व्यक्तिगत मान्यता है कि जैनधर्म कोई सम्प्रदाय, मत या वाड़ाबंदी से आबद्ध नहीं है। वह तो वस्तुधर्म होने से विश्वधर्म है। जैनधर्म के सिद्धान्त सार्वभौम, सर्वोपयोगी एवं सार्वजनीन हैं । जैनधर्म में अहिंसा, अनेकान्त, अपरिग्रह आदि मानवतामूलक सिद्धान्त सर्वोदयकारी होने से वह सर्व मान्य मानव धर्म है ।
भारतीय संस्कृति, साहित्य तत्वज्ञान, धर्मशास्त्र, विज्ञान, इतिहास, कला- शिक्षण, शिल्प-स्थापत्य, आदि ऐसा कोई विद्याक्षेत्र नहीं है जिसमें जैन साहित्य का प्रवेश न हो । जैन - साहित्य तो भारत का ही नहीं अपितु विश्व - साहित्य का एक अविभाज्य अंग है किन्तु उसका परिचय एवं आधुनिक दृष्टि से संशोधन और प्रकाशन उचित मात्रा में नहीं हुआ है अतएव इसकी संपूर्ति के लिए मैं समझता हूँ 'कि सन्मति - साहित्य प्रकाशन योजना' को मूर्त स्वरूप दिया जाए और उसका संचालन कार्य श्री पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान, वाराणसी जैसी असाम्प्रदायिक और साधनसम्पन्न संस्था को सौंपा जाए।
मेरा अन्तर्भाव है कि उक्त योजनानुसार प्रकाशित सन्मति साहित्य
१. सर्वोपयोगी हो- - जैन- जैनेतर सभी को उपयोगी एवं कार्यपद्धति प्रारम्भ से ही असाम्प्रदायिक रही है। एकमात्र
सर्वोदयकारी हो ।
जैन विद्या का शिक्षण, सम्पादन, संशोधन एवं प्रकाशन
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मेरी अन्तर्भावना
[ श्री शान्तिभांई को अपनी भावि योजना के विषय में पूछे जाने पर उन्होंने जो अन्तर्भावना व्यक्त की है वह यहाँ लिपिबद्ध की गई है । ]
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२. असम्प्रदायिक हो - प्रकाश्य सम्मति-साहित्य में कहाँ भी साम्प्रदायिकता का प्रथम या प्रवेश न हो।
३. सिद्धान्तों के अविरुद्ध हो - प्रकाश्य सम्मतिसाहित्य जैन-धर्म के मौलिक सिद्धांतों के अविरुद्ध हो और जिसमें विश्वमान्य सिद्धान्तों का वैज्ञानिक दृष्टि से विश्लेषण हो वास्तव में यह सर्वोपयोगी सन्मति साहित्य प्रकाशन योजना समग्र जैन- समाजस्पर्शी योजना है। जैन समाज को जो साहित्यिक धरोहर विरासत में मिली है उस सर्वोपयोगी जैन साहित्य को जन-साधारण तथा असाम्प्रदायिक भाव से प्रकाशित कर वितरण करना और जनत्व, विश्वबन्धुत्व एवं समत्व का सर्वाधिक प्रचार-प्रसार करना मुख्य उद्देश्य है।
यह 'सर्वोपयोगी सन्मति साहित्य प्रकाशन योजना' आगे जाकर 'जैन साहित्य अकादमी' का रूप धारण करे, यह मेरा स्वप्न है ।
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२. पार्श्वनाथ विद्याश्रम, वाराणसी में 'जैन प्रशिक्षण संस्थान' की स्थापना
श्री पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान, वाराणसी एक असाम्प्रदायिक सर्वोच्च संस्था है। कुछ वर्षों तक मैंने इस संस्था के संचालन में योगदान दिया है और अनुभव किया है कि इस संस्था की संचालक समिति एवं उसकी
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