Book Title: Satya Harischandra
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 9
________________ "बड़ा दुःख है, बड़ा कष्ट है, धनवालो क्या करते हो ? दीन दुखी का हृदय कुचलते, नहीं जरा भी डरते हो ? लक्ष्मी का क्या पता, आज है, कल दरिद्रता छा जाए, दो दिन की यह चमक - चाँदनी, किस पर हो तुम गरवाए ? अगर किसी की कर न सका, धन दौलत पाकर भी सेवा, दयाभाव ला दुःखित दिल के जख्मों को यदि भर न सका । वह नर अपने जीवन में सुख शान्ति कहाँ से पाएगा, ठुकराता है जो औरों को, स्वयं ठोकरें खाएगा ।" The Prison yard का अमर चित्रकार अपने चित्रों के लिए I want to paint humanity, humanity and again humanity का उत्साह पालता था । humanity अर्थात् मानवता ही अपने उत्कर्ष पूर्ण रूप को लेकर मनुष्य को देवता ही नहीं, उससे भी ऊपर का स्थान प्रदान कर सकती है । हम अपने सुख-दुःख को, संसार के सुख - दुःख में मिलाकर ही उनका वास्तविक अनुभव प्राप्त कर सकते हैं । करुणा दया को समझ कर ही मानव अपने आप को समझ सकता है । हम आत्म चिंतन की घड़ियों में इस पर सोचने का कष्ट क्यों नहीं उठाते ? दूसरों की कठिन विपत्ति हमारे लिए कुछ महत्त्व नहीं रखती, यह मनुष्यता का अपमान है । हरिश्चन्द्र का राज्य छूटा, प्रिया छूटी और पुत्र छूटा - कर्तव्य की वेदी पर उसने सर्वस्व का बलिदान किया, चांडाल की सेवा वृत्ति स्वीकार की, उसका आदर्श चित्र संसार की आँखों में विस्मय भरने में समर्थ हुआ । अब कविश्रीजी के द्वारा चित्रित इसी संसार में रहने वाले द्विज-पुत्र का चित्र देखिए । Jain Education International 1 - · - रानी तारा, पति ऋण चुकाने में ब्राह्मण परिवार की दासी बनी, कठिन श्रम उठाना स्वीकार किया, उपेक्षा, घृणा, कष्ट सब कुछ - अपने आशा धन रोहित पुत्र को सामने रख कर सहने का व्रत लिया । भविष्य की कल्पनाएँ उसके साथ हैं - कभी रोहित उसका उद्धार कर सकेगा ! चक्र में रोहित भी असमय उसका साथ छोड़ देता है, काल सर्प का कठिन प्रहार सुकुमार बालक नहीं सह सका । माता का हृदय एक बार ही विदीर्ण हो गया । उसकी यह चीत्कार मगर भाग्य [ ८ ] For Private & Personal Use Only · www.jainelibrary.org

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