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प्रकाशकीय निवेदन [७ लोग प्रचुररूपेण जैन साहित्य की ओर आकृष्ट हुए, जैन साहित्य के दर्शन से भी लोग प्रभावित हुए तथा उक्त समिति के सदस्यों में भी अपूर्व उत्साह, ओज व उमंग का संचरण हुआ ।
अथक प्रयासों के परिणामस्वरूप स्वर्गीय परम पूज्य आचार्य भगवन्त श्रीमद् विजयप्रेमसूरीश्वर महाराज साहब से प्रेरित कर्मसाहित्य के कइ ग्रन्थ आज तक तैयार हो गये है तथा और भी तैयार हो रहे हैं। इनके अतिरिक्त अन्य भी अर्वाचीन एवं प्राचीन छोटे बडे लगभग २५ से ३० ग्रन्थ प्रकाशित हुए है । बन्धविधान महाशास्त्र के सभी भाग मुद्रित होने से सम्पूर्ण षन्धविधान सटीक मुद्रित हो चुका है एवं आज आपके कर कमलों में 'सत्ताविधान' महाग्रन्थ के "हेमन्तप्रभाचूर्णिसमलङकृता उत्तरपयडिसत्ता" 'पूर्वार्ध' का मुद्रण समर्पित कर रहे हैं।
इसके साथ ही और भी पांच ग्रन्थ का भी मुद्रण हम आपके करकमलों में प्रस्तुत कर रहे है ।
तीन-चार (३/४) वर्षे पूर्व में भी हमारी संस्था द्वारा प.पू. आचार्यदेव श्रीमद्विजयवीरशेखरसूरीश्वरजी म. सा. के द्वारा रचित (२२) बाइश पुस्तकों का विमोचन बडे समारोह के साथ उन्ही की निश्रा में पिंडवाडा में करवाया था ।