Book Title: Samyaktva Sara Shatak
Author(s): Gyanbhushan Maharaj
Publisher: Digambar Jain Samaj

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Page 16
________________ संसारी प्राणी को अकारण अनोखी नई चीज के पैदा होने का चानचक भय हुआ करता है वह सोचता रहता है कि न जाने किस समय क्या कोई नया बबाल खड़ा हो जाये ताकि मुझे कष्ट मे पड़ना पड़े, किन्तु ज्ञानी वैराग्यशाली के ज्ञान मे वे बुनियादी नई चीज न तो कोई कभी हुई और न हो ही सकती है जो कुछ होता है वह अपने सहायक कारण क्लाप को लेकर उपादान के अनुसार हुया करता है ज्ञान का काम जो कि सबको जाना करता है, सिर्फ उसे जानने का है उससे उस का कोई भी विगाड़ सुधार नहीं है । इस प्रकार जो समझदार है जिसके अन्तरंग में सञ्चा प्रकाश है उसे इस भूतल पर किसी भी तरह का कोई भी डर नही वह निर्भय हो रहता है। किन्तु जो अज्ञानी है भूल खा रहा है उसके लिये डर ही डर है जैसी कि लोकोक्ति भी है शोकस्थान सस्राणि भयस्थान ज्ञतानि च । दिवसे दियसे मूढ़ माविश्यन्ति न पण्डितं ॥२॥ अतः उस सम्यक्त्व रत्न का आदर करना ही स्वहितपी का कार्य है इस लिए रस सम्यक्त्व का ही हम आगे वर्णन करते हैंसम्यक्त्वमेवानुवदामि ताद्विपत्पयोधेस्तरणाय नाव: समं समन्तादुपयोगि एतदस्मादृशां साहजिकश्रियऽतः । ___अर्थात्- सम्यक्त्व जो है वही इस विपत्तियो के समुद्र संसार से तेर कर के पार होजाने के लिये नौका के समान है

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