Book Title: Samboha Panchasiya
Author(s): Gautam Kavi
Publisher: Bharatkumar Indarchand Papdiwal

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Page 15
________________ T } संमोह वैचासिया अति बालपन से ही आपको धार्मिक संस्कारों से विभूषित किया गया था। आपने आयु के दसवें वर्ष में ही परम पूज्य आचार्य श्री समन्तभद्र जी महाराज से शुद्रजलत्याग, रात्रिभोजनत्याग, कन्दमूलत्याग और पच्चीस वर्ष का होने तक ब्रह्मचारी रहने का नियम लिया। जब आप दूसरी कक्षा में पढते थे, तभी से आपने चाय का त्याग कर दिया था। आपका त्याग इतना सहज था कि दूसरों को कभी कष्ट नहीं हुआ। आप किसी वस्तु का त्याग करते थे तो उसके बदले में अन्य वस्तु की चाहना भी नहीं करते थे । - आप गुरु का अन्वेषण कर रहे थे। महाराष्ट्र प्रान्त के शेलू नामक गाँव में आपने परम पूज्य आचार्यकल्प श्री हेमसागर जी महाराज के दर्शन किये । उनकी चर्या एवं ज्ञान से अभिभूत होकर आपने उनके चरणों में श्रीफल भेंट किया एवं अपने विचारों से उन्हें अवगत कराया। उनकी अनुना से ही जयकुमार ने दसवीं तक की शिक्षा प्राप्त की । २८-४-८६ को घर का आजीवन त्याग करके चरित्रनायक ने गुरुचरणों की शरण को वरण किया । जलगाँव जिले के नेरी नामक गाँव में आपने आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत धारण किया। रागियों के रंग-बिरंगे वस्त्रों को त्याग कर आपने श्वेतवस्त्र परिधान किये। वह अक्षयतृतीया का पावन दिवस था। गुरुदेव ने आपको जैनेन्द्रकुमार यह नवीन नाम प्रदान किया। गुरु का अनुगमन करते हुए आप अतिशय क्षेत्र कचनेर जी पहुँचे । आषाढ शुक्ला अष्टमी के दिन आपने चिन्तामणि पार्श्वनाथ प्रभु के समक्ष गुरु के द्वारा सप्तम प्रतिभाव्रत धारण किया। आप गुरुदेव के चरणों में अध्ययनरत हो गये । १३-३- ८७ को आपने क्षुल्लक दीक्षा धारण की। जन्मभूमि से केवल ५५ कि.मी. दूरी पर स्थित शिऊर नामक गाँव में यह समारोह सम्पन्न हुआ। गुरुदेव ने आपका नाम रवीन्द्रसागर रखा । १९८७ का वर्षायोग न्यायडोंगरी (जि. नाशिक) में हुआ । वर्षायोग के तत्काल बाद २३-१०-१९८७ को आपने | ऐलक दीक्षा स्वीकार की । गुरुदेव ने आपको रूपेन्द्रसागर इस नाम से अलंकृत किया। आपने गुरु के साथ सिद्धक्षेत्र मांगीतुंगी के दर्शन किये तथा सोनज (मालेगाँव) से आपने अलग विचरण करना प्रारंभ किया 1 विहार करते-करते आप अपने दादागुरु परमपूज्य आचार्य श्री सन्मति सागर जी महाराज के चरणों में पहुँचे। अतिशय क्षेत्र डेचा (जि. डूंगरपूर) 0

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