Book Title: Samboha Panchasiya
Author(s): Gautam Kavi
Publisher: Bharatkumar Indarchand Papdiwal

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Page 65
________________ PREसनीवासिया - स्था रहती हैं. कोपयोग में साक्षात् अजर उमर अविनाशी मोक्षपद की प्राप्ति होती है । जीव का परम कर्तव्य है कि वह अशुभोपयोग का सर्वथा त्याग करें । शुद्धोपयोग का लख्य रखकर कार्य करें तथा जबतक उसकी प्राप्ति न हो, तबतक शुभोपयोग में अवस्थित रहे । धर्माधर्म का फल धम्मेण यसक्कित्ती धम्मेण य होइ तिहुवणे सुक्खं । घम्मविहूणो मूढ य दुक्खं किं किं ण पाविहसि ॥३६॥ | अन्वयार्थ :(धम्मेण) धर्म से (यस) यश (कित्ती) कीर्ति होती है। (पम्मेण य) धर्म से ही (तिहुवणे) त्रिभुवन में (सुक्खं) सुख (होड) होता है (धम्मविहूणो) धर्म विहीन (मूळ य) मूर्ख (किं किं) कौन-कौनसे (दुक्ख) दुख (ण पाविहसि)। प्राप्त नहीं करता है ? संस्कृत टीका : हे शिष्य ! अत्र संसारे जीवात्य धर्मेण कृत्वा निर्मला कीर्तिर्यशश्च भवति, पुनः धर्मेण कृत्वा त्रिभुवनमध्ये महत्सुखं प्राप्यते, पुनः धर्मेण कृत्वा स्वर्गमोक्षादिकं सुखं प्राप्यते चतुर्गतिषु। टीकार्थ : हे शिष्य ! इस संसार में धर्म करने से जीव को कीर्ति व यश प्राप्त होता है। धर्म के कारण त्रिलोक में महासुख मिलता है। धर्म से स्वर्ग, मोक्ष की प्राप्ति होती है । धर्म करने से चारों गतियों में सुख मिलता है। भावार्थ : जैसे वायु के कारण फूल का सौरभ चतुर्दिक में फैल जाता है, वैसे धर्म | के कारण मनुष्य का यश चारों ओर फैल जाता है । ऐसा कोई सुख संसार में नहीं है, जिसे धर्म के कारण नहीं पाया जा सकता। स्वर्ण और मोक्ष की प्राप्ति भी इसी धर्म के कारण होती है, अतः प्रत्येक संसारी प्राणी को धर्म धारण करना चाहिये। जो जीव धर्म से विमुख हैं, उन जीवों के जीवन में अनेक प्रकार के दुःख प्रवेश करते हैं। वे जीव दरिद्री, रोगों से वस्त, कुपुत्रादि दुष्ट पारिवारिक

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