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Fotoसबौर पंचासिया समाधान-स्थिर चित्त से । इन गुणों को जानकर रुचि करता है, उन मनुष्यों के समस्त पाप कर्म क्षय को प्राप्त होते हैं । बाद में वे शिवलोक में वास को प्राप्त करते हैं। भावार्थ :
ग्रन्थ का घटन कैसे करना चाहिये ? इस प्रश्न का उत्तर देते समय गन्धकर्ता कहते हैं कि गन्ध का पठन शुद्धभादों से राहित होकर करना चाहिये क्योंकि शुद्धभावों से ग्रन्थ को पढ़ने से प्राप्त होने वाला ज्ञान ही केवलज्ञान का बीज बलता है । कति कहते हैं कि जो इश गन्ध को पढ़ते-पढ़ाते हैं. श्रद्धा | करते हैं, वे लोग अपने पापों का नाश कर मोक्ष जाते हैं।
ग्रन्थ का उपसंहार सावणमासम्मि कया गाथाबंधेण विरइयं सुणहं ।
कहियं समुच्चयत्थं पयडिज्जं तं च सुहणोहं ॥५१॥ अन्वयार्थ :(सावणमासम्मि कया) श्रावण मास में (गाथाबंधेण) गाथाबन्ध से (विरहयं) रचित (सुणह) सुज (कहियं) कहा है (समुच्चयत्थं) समुच्चयार्थ (तं च) उसको (सुहणोह) स्वात्मज्ञान के लिए (पयडिज्ज) बनाया। संस्कृत टीका :
कवीश्वर गौतमावामी कथयति - मया इयं संबोधपद्यासिका गाथाबन्धन | भव्यजीवानां प्रतिबोधनार्थ श्रावणसुदी र दिने कृता । समुच्चयत्थं, कोऽर्थः ?
बहवोऽर्धा भवन्ति, परन्तु मया संक्षेपार्थे कथिता । च पुनः स्वात्मोत्पन्न सुखवोध | प्राप्त्यर्थ मया कृतम् । टीकार्थ :
____कवीश्वर गौतमस्वामी कहते हैं - मेरे द्वारा यह संबोध पंचासिका माथा | बंध से भव्यजीवों के प्रतिबोधनार्थ श्रावण शुक्ला द्वितीया को पूर्ण किया | गया है।
समुच्चय का क्या अर्थ है ?