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संगोह पंचासिया
ज्ञातव्या । इत्थं सम्यक्त्वं ये पालयन्ति ते धन्याः ज्ञातव्या ।
टीकार्थ :
हे शिष्य ! वे नर-नारी इस संसार में धन्य हैं, वे ही मनुष्य धनवान हैं. ऐसा जानना चाहिये । वे ही जीवित हैं ।
शंका- वे कौन हैं ?
समाधान- जो मनुष्य इस संसार में मनुष्यजन्म को प्राप्त कर और श्रावककुल को प्राप्त कर दृढ होकर श्रद्धा करके सम्यक्त्व पालते हैं, पाल रहे हैं या पालेंगे, वे नर धन्य हैं।
शंका- वे धन्य कैसे हैं ?
समाधान जो नर नित्य निरन्तर जिनशासन में मुजि, आर्यिका श्रावक, श्राविकारूप चतुर्विध संघ में कोई धर्मधुरन्धर होता है। धार्मिक की धर्मानुराग से कपट त्याग कर भक्ति करते हैं, उनको देखकर हर्षित होते हैं वे नर धन्य हैं ऐसा जानना चाहिये तथा जिनशासन में जिनेन्द्र के सम्यग्दर्शन. गुण ज्ञान, चारित्र, दशलक्षण धर्म, षोडश भावना, इत्यादि लक्षण विशेषरूप से जानने चाहिये। इनका व सम्यक्त्व का जो पालन करते हैं वे नर धन्य हैं । धनवान भी वे ही हैं क्योकि उन्होंने सम्यक् सम्पत्ति प्राप्त कर ली है अतएव भव्य को जिनगुणों में अपना मन लगाना चाहिये ।
भावार्थ :
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इस संसार में वे ही जीव धन्य हैं -
१. जो जीव निर्दोष सम्यग्दर्शन का पालन करते हैं। २. जिन जीवों की भक्ति जिनशासन में हैं।
३. जो चतुर्विध संघ में दान देने के लिए लालायित रहते हैं।
४. जिनका धर्मानुराग निष्कपट होता है।
५. जो सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र का अनुपालन करते हैं।
६. जो दशलक्षणधर्म को अवधारित करते हैं।
७. जी षोडषकारण भावना आदि का निरन्तर चिन्तन करते रहते हैं ।
८. जो जिनेन्द्रदेव के व्दारा कथित मार्ग का अनुसरण करते हैं।
जिनके पास सुवर्ण, चान्दी आदि धातुओं का भण्डार हो, वे धनवान
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