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क्रम
१.
२.
३.
४.
५.
६.
७.
८.
संग्रह प्रग्रासिया
श्लोकानुक्रमणिका
गाथार्ध
अ
अत्थस्स करणादो अप्पेसिहसि अयाणय
इ
इय जाणिउ णियचित्ते
इय जाणऊण हियए
उ
उच्छिष्णा किं णु जरा
क
कस्स वि कुरूवकार्य कस्स वि धणेणरहिए.
किं धम्मे दयरहियं
ग
राजकण्णचवललच्छी
९.
१०. गब्भंत इण दुक्खं
ज ११. जड़ अक्खरं पण जाणामि
१२. जड़ इच्छइ परलोयं
१३. जइ कहब माणुसत्तं
१४. जइ गाहियहि मयरहरं १५. जइ रक्खड़ सुरसंघो
गाथा क्रम
४२
ि
१०
६५
२८
* *
२४
४१
१६
२३
२
३१
३
४४
२०
75
पृष्ठ क्रम
یبا
७
१३
६१
ફ
३२
३१
ܢ
१९
२९
३
20
६०
२४