Book Title: Samboha Panchasiya
Author(s): Gautam Kavi
Publisher: Bharatkumar Indarchand Papdiwal

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Page 87
________________ • संबोह पंचासिया । नहीं हैं। जिनके पास हीरे जवाहरातों के अम्बार हो, वे धनवान नहीं है । जिनके पास विपुल सुख-सुविधायें उपलब्ध हैं, वे धनवान नहीं हैं। जिनके पास त्रिलोकव्यापी यश्च का भण्डार हो, वे धनवान नहीं हैं। जिन्होंने अपने आत्मगुणों की सम्पत्ति प्राप्त कर ली हैं, वे ही मनुष्य धनवान हैं क्योंकि निजा को प्राप्त किये बिना सारा वैभव व्यर्थ है कहा भी है कि आत्मा से अनुराग हो, धन्य होत नर सोय । सुत दारा और संपदा, पापी के भी होय ॥ ग्रन्थपवन का फल । जो पढइ सुद्धभावे सुणहि सह देहि थिरकण्णं । पावं तस्स पणासह सिवलोए होइ आवासं ॥५०॥ अन्वयार्थ : (जो ) जो (शुद्धभावे) शुद्ध भाव से ( पढइ) पढ़ते हैं (सुणहि) सुनते हैं (सद्दहइ ) अद्धा करते हैं (थिरकण्णं) स्थिर चित्त से कान (देहि) देते हैं (तस्स) उनके (पावं) पापों का (पणासह) नाश होता है और (सिवलीए) मोक्ष में (आवास) आवास (होइ) होता है। संस्कृत टीका : हे शिष्य ! इमां संबोधपञ्चासिकां शुद्धभावेन ये नरा पठन्ति, पाठ्यन्ति, श्रृण्वन्ति, श्रद्धानं कुर्वन्ति । केन ? स्थिरचित्तेन । एषां गुणान् ज्ञात्वा रूचि कुर्वन्ति, तेषां नराणां समस्त पापकर्माणि क्षयं यान्ति । पश्चात्ते शिवलोके मोथे वासं प्राप्नुवन्ति । टीकार्थ: हे शिष्य ! इस सम्बोध पंचासिका को शुद्धभाव से जो गर पढ़ते हैं. पढ़ाते हैं, सुनते हैं. श्रद्धान करते हैं । शंका- किसप्रकार ? 68

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