________________
AARAN
शिवार'
कहलाते हैं ।
देव कौन कहलाते हैं ? जो जन्म, जरा और मरण का हरण कर लेते हैं. वे देव हैं। सकलदुःखों के विनाशक को देव कहते हैं। इसके अतिरिक्त सब कुदेव कहलाते हैं ।
भावार्थ :
-
आराधक को आराधना करने से पहले आराध्य, आराधना में कारण आदि अनेक बातों पर विचार कर लेना चाहिये। आराध्यभूत जो शुद्धात्मा है
उसमें सहकारी कारणभूत देव, गुरु और धर्म है।
इन्हीं तीनों के श्रद्धान को सम्यग्दर्शन कहा है। यथा
हिंसारहिए धम्मे अठ्ठारह दोस वज्जिए देवे ।
णिग्गंथे प्रावयणे सदहणं होई सम्मत्तं ॥
-
(मोक्षपाहुड - १० )
अर्थ :हिंसारहित धर्म, अट्ठारह दोषविवर्जित देव व निर्ग्रन्थ प्रवचन पर श्रद्धान करने से सम्यक्त्व होता है ।
धर्म का लक्षण क्या है ? जो द्रव्यहिंसा और भावहिंसा से रहित हो, जो सम्पूर्ण जीवों का उद्धार करता हो वह धर्म है। जो मानव को मानव के साथ मानवीय व्यवहार करने की शिक्षा देता हो वह धर्म है। जो आत्मा को संसार के दुःखों से छुड़ाकर शाश्वत मोक्षसुख में ले जाकर विराजमान कर देवे वह धर्म है | समस्त उदार भावनाओं का नाम धर्म है।
गुरु कैसे होते हैं ? जो आत्मसाधना में तल्लीन रहते हैं, जिनकी हर 'चर्या जीवजगत का उद्धार करने वाली होती है, जिनका पवित्र आचरण विश्व के समस्त जीवों के लिए आदर्श होता है और जिनका समग्र जीवन स्व- पर कल्याण में समर्पित होता है, वे निर्ग्रन्थ तपस्वी गुरु कहलाते हैं ।
देव का लक्षण क्या है ? जिन्होंने राग, व्देष, मोहादि समस्त आत्मशत्रुओं पर विजय प्राप्त कर लिया है, जो चराचर में स्थित सम्पूर्ण द्रव्यों को उनके गुण और पर्यायों के साथ युगपत् जानते हैं और जो संसार के समस्त जीवों को मोक्षमार्ग का पथ दिखलाते हैं उन्हें देव कहते हैं ।
देव, गुरु और धर्म का समीचीन लक्षण जानकर उनपर श्रद्धान करनी चाहिये। इन तीनों पर श्रद्धान करने वाला जीव संसार के महासागर में पलीत
54