Book Title: Samboha Panchasiya
Author(s): Gautam Kavi
Publisher: Bharatkumar Indarchand Papdiwal

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Page 82
________________ संजौह मंचामिया जिनार्चना कर । गद्य-पद्यमय स्तुति पर । शंका - कहाँ ? समाधान - जिनेन्द्र के चरण में। सत्यवचनरुप जिलमार्ग को अपने हृदय में धारण कर । सम्यक्त्व। सहित बारह व्रतों का पालन कर । शंका - क्यों? समाधान- जिससे इह-परलोक के समस्त भोग स्वयमेव ही तू प्राप्त करेगा।। भावार्थ: देवदर्शन एवं उनका स्तवन मुनि और श्रावक धर्म का आवश्यक कर्तव्य है । देवदर्शन की महिमा अचिन्त्य है । देवदर्शन सम्यग्दर्शन का आद्य कारण है । देवदर्शन के कारण परिणामों में इतनी निर्मलता आ जाती है कि क्षणाई में ही निधत्ति और निकाचित जैसे पापकर्म नष्ट हो जाते हैं । जिनेन्द्रदेव के दर्शन कर लेने के उपरान्त सन्तुष्ठमना हुए भक्तों के मन से निकलने वाले उद्दारों को प्रकट करते हुए आचार्य श्री गुणनन्दि जी महाराज लिखते हैं कि अद्य संसारगम्भीरपारावारः सुदुस्तरः । सुतरोऽयं क्षणेनैव, जिनेन्द्र तव दर्शनात्॥ अद्य मे क्षालितं गात्रं, नेत्रे च विमलीकृते। स्नातोऽहं धर्मतीर्थेषु , जिनेन्द्र तव दर्शनात्।। अर्थात् :- यह संसारसागर अपार , गंभीर और सुदुस्तर है। हे जिनेन्द्र ! आपके दर्शजों से उसे सुगमतापूर्वक तीरा जा सकता है। आज मेरा तन पवित्र हो गया. नेत्र निर्मल हो गये। हे जिनेन्द्र ! आपके दर्शनों से आज मैं धर्मतीर्थ में स्नान कर चुका हूँ। जिनेन्द्रप्रभु की वन्दना करने से मिलने वाले फल के विषय में आचार्य श्री पूज्यपाद जी ने लिखा है कि जन्म-जन्म कृतं पापं, जन्मकोटिसमार्जितम्। जन्ममृत्युजरामूलं, हन्यते जिनवन्दनात्॥ (समाधिभक्ति - 1) अर्थात् :- कोटि जन्म में उपार्जित किये गये पाप जिजेन्द्र के दर्शन मात्र से |

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