Book Title: Samboha Panchasiya
Author(s): Gautam Kavi
Publisher: Bharatkumar Indarchand Papdiwal

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Page 70
________________ Prastasiबौर वंशासिया भावार्थ : जब धार्मिक व्यक्ति धर्म करने का फल प्राप्त करता है, तब वह सुन्दर, निरोगी, सर्वजनप्रिय. सुख का उपभोग करने वाला और दुःखों का विनाशक होता है । वह इहलोक और परलोक दोनों में ही सुखी होता है। धर्म का स्वरूप धम्मो दयाण मूलं विज्जाविणयं च उवसमो मुणिणा। तं सयल परम बीयं कहियं जिणवरिंदेहिं ॥३९॥ अन्वयार्थ :(धम्मो) धर्म (दयाण) दया का (मूलं) मूल (विज्जा) विद्या (च) और (विणयं) विनय (मुणिणा) मुनि का (उवसमो) उपशम (तं) उसे (सयल) सकल (परम) परम (उत्कृष्ठ, श्रेष्ठ) (बीयं) बीज (जिणवरिंदे हिं) जिनेन्द्रदेव ने (कहियं) कहा है। संस्कृत टीका : शिष्य आह - हे भगवन् ! कीदृशो धर्मः ? स आह - दयासहितो धर्मः । हिंसारहितो धर्मः, पुनः दशविधोत्तमक्षमादिलक्षणो धर्मः । निश्चयव्यवहार दिधारत्नत्रयमयो धर्मः । पुनः परेषां यत्सुखं दीयते स धर्मः । परोपकारो धर्मः । पुनः कैः धर्म उत्पद्यते ? सिद्धान्ताध्ययनैः । सधर्मणां सह विनयैः । उपशमैः कषाय शान्तभावः। एतैराक्तैरष्टप्रकारैः धर्म उत्पद्यते । पुनः कीदृशो धर्मः ? मुनीनां योग्यः। ईशा लक्षणं धर्मस्य ज्ञातव्यम् । केन कथितम् ? जिनेन्द्रः कथितम् । टीकार्थ : शिष्य कहता है - हे भगवान ! धर्म कैसा है ? वे कहते हैं(१) दथासहित धर्म है अर्थात् हिंसारहित धर्म है । (२) उत्तमक्षमादि लक्षणरूप दशविध धर्म है। (३) निश्चय व्यवहार ये दो प्रकार का रत्नत्रयधर्म है। (४) जो दूसरों को सुख दे वह धर्म है। (५) परोपकार धर्म है।

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