Book Title: Samboha Panchasiya
Author(s): Gautam Kavi
Publisher: Bharatkumar Indarchand Papdiwal

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Page 46
________________ ! : संवाह पंचासिया न मन्त्रमौषधं तन्त्रं अर्थात् : काल के मुख से इस जीव को मन्त्र तन्त्र, औषधि, माता, भाई, पिता आदि कोई भी नहीं बचा सकता। इस जीव ने जो कुछ किया है, उसका फल कसे भोगना ही पड़ता है। भावार्थ : मृत्यु जीवन की अनिवार्य घटना है। जीवन के पहले क्षण से ही जीव की यात्रा प्रारंभ कर देता है मृत्यु - जैनागम में मृत्यु के सत्रह भेद किये गये हैं । उनमें एक भेद है। आवीचिमरण । प्रतिक्षण आयु का एक-एक निषेक उदय में आकर खिर जाता है। यह जीव की प्रतिपल होने वाली मृत्यु ही है। इसी को आवीचिमरण कहा गया है । प्रतिपल मृत्यु का ध्यान रहने पर जीव पाप कर ही नहीं सकता । इसीलिए प्रतिसमय मृत्यु की अनिवार्यता का चिन्तन किया जाना चाहिये । क्या इस जीव को कोई मृत्यु से बचा सकता है ? नहीं । आचार्य श्री वल्केर जी लिखते हैं कि हयगयरहणरबलवाहणाणि मंतोसधाणि विज्जाओ। मच्चुभयस्स ण सरणं णिगडी णीदी य णीया य ॥ (मूलाचार :- ६९७ ) अर्थात् : घोड़ा, हाथी, रथ, मनुष्य, बल, वाहन, मन्त्र, औषधि, विद्या, माया, और बन्धुवर्ग से मृत्यु के भय से रक्षक नहीं है । नीति अज्ञानचेता लोग मृत्यु से बचने के लिए मृत्युंजय आदि मन्त्रों का. विविध तन्त्रों का प्रयोग करते हैं परन्तु वे मन्त्र-तन्त्र उन्हें मृत्यु से नहीं बचा सकते। किसी भी तरह की औषधि जीव को मृत्यु के मुख से नहीं बचा सकती है। संसार में ऐसी कोई मणि नहीं है, जो इस जीव को मृत्यु के जाल से बचा सके। कुछ अज्ञानी जीव मृत्यु से बचने के लिए सुवर्ण का दान, भूमि का दान और गाय आदि का दान करते हैं, परन्तु किसी भी प्रकार का दान जीव 27

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