Book Title: Samboha Panchasiya
Author(s): Gautam Kavi
Publisher: Bharatkumar Indarchand Papdiwal

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Page 57
________________ संबोजपचासिया भान्त धारणा को मन में धारण कर जीव को निश्चिन्त नहीं होना चाहिये । अशुभकर्म का कब उदय आयेगा ? कोई पता नहीं । जब भी वे उदय में आयेंगे, जीव रोगादिक के द्वारा स्त हो ज.३। आयुक ह.पर अल्यु निश्चित् द्वार खटखटायेगी । अतएव हे जीव ! तुम गाफिल मत होओ । मृत्यु, रोग वा जरावस्था तुम्हें कष्ट दे, उससे पहले ही तुम आत्मा का कल्याण कर लो। परतीर को प्राप्त करने का उपाय भीम भवोवहि पडियो झंकोलिय दुक्ख पावलहरीहिं। अवलंबिय जिणधम्मे आसण्णं करहि परतीरं ।।२९॥ अन्वयार्थ :(भीम) भयंकर (भवोवहि) संसार सागर में (पडियो) पड़कर (दुक्ख) दुःख रूप (पावलहरीहिं) पाप लहरियों के द्वारा तुम (झंकोलिय) झांकोलित हो रहे हो । (जिणधम्मे) जैनधर्म का (अवलंबिय) अवलम्बन करो (परतीरं) परतीर को (आसण्णं) निकट (करहि) कर लो। संस्कृत टीका : रेजीव ! त्वं संसारसागरमध्ये पतितः सन् पापलहरीभिः झङ्कोलितश्च सन् | मुहर्वारंवारंपरिभ्रमणं करोषि इति मत्वा जिनधर्ममेवावलम्बय । हेमूढ ! त्वं विषयासक्तो मा भव । मोक्षरूपं परतीरं निकटं कुरु । टीकार्थः रेजीव ! तुम संसारसागर में गिरकर पापरूपी लहरों के द्वारा स्कोलित होकर बार-बार परिभ्रमण कर रहे हो। ऐसा जानकर तुम जैनधर्म का अवलम्बन करो। हे मूढ ! तुम विषयासक्त मत होओ। मोक्षरूपी परतट को तुम अपने निकट कर लो। भावार्थ : संसार सागर के समान है । संसार के महासागर में पापों की लहरें उछल रही हैं, विषयासक्त जीव उन लहरों में झूलता हुआ मस्त हो रहा है,

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