Book Title: Samboha Panchasiya
Author(s): Gautam Kavi
Publisher: Bharatkumar Indarchand Papdiwal

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Page 55
________________ संजीर शासिया उत्पन्न हुये हो । कहाँ ? मलमत्र से दुर्गन्धित गर्भवास में उत्पन्न हुरो हो । उस स्थान में राग करके पापपिण्ड से बन्ध गये । लो भी पापरूप विषयों से रति क्यों करते हो? कहा है - याता याता रतिं - अर्थ :- जो-जो भी विषयों में राम करते हैं, वे-वे नष्ट हुए हैं। इसलिए संसार दैत्यवत् है । जीव को वैराग्य क्यों नहीं होता ? और भी कहा है - वैराग्यात्स्वसुखं चैवअर्थ :- वैराग्य से स्वात्मिक सुख प्राप्त होता है, वैराग्य से दुःख का नाश होता है । वैराग्य से काया आरोग्यवान बनती है और वैराग्य से मोक्ष का सुख प्राप्त होता है भावार्थ: मिथ्यात्व व विषयरति ये दो संसार में भ्रमण करने के मूल कारण हैं। इसी कारण बहु दुःखदायक गर्भवास में यह जीव उत्पन्न होता है । वह गर्भ मलमूत्रादि से दुर्गन्धित है । वहाँ भी रागादि भावों से यह जीव पापकर्मों का बन्ध करता है। पापों से मुक्त होकर आत्मरमण करने के लिए वैराग्य की आवश्यकता होती है । इष्ट वस्तुओं में प्रीतिरूप राग तथा अनिष्ट वस्तुओं में अप्रीतिरूप व्हेष इन दोजों के वश हुआ जीव कर्मों के द्वारा बह होता है। अतः साधक का यह परम कर्तव्य है कि वह परवस्तुओं के प्रति अपने विकल्पबुद्धि का संकोच कर लेवें । परवस्तुओं के प्रति विरक्ति को वैराग्य कहते हैं। आचार्य श्री अकलंक देव ने लिखा है - चारित्रमोहोदयाभावे तस्योपशमात् क्षयात् क्षयोपशमाद्वा शब्दादिभ्यो विरञ्जनं विराग इति व्यवसीयते। विरागस्य भावः वा वैराग्यम्। अर्थात् :- चारित्रमोह के उदय का अभाव होने पर अथवा उसके उपशम, क्षय अथवा क्षियोपशम के कारण शब्दादि पंचेन्द्रियों के विषयों से विरक्त होना विराग है। ।

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