Book Title: Samboha Panchasiya
Author(s): Gautam Kavi
Publisher: Bharatkumar Indarchand Papdiwal

View full book text
Previous | Next

Page 60
________________ सबीह पंचासिया विपरीत मिध्यात्व संशय मिथ्यात्व पाँच भेद हैं। यथा एक विनय मिथ्यात्व व अज्ञान मिथ्यात्व | मिथ्यात्व व विषयों के प्रति रागभाव से दोनों भाव आत्मा को अपने स्वरूप से दूरानुदूर कर देते हैं। इससे जीव पंचपरिवर्तनरूप संसार में परिभ्रमण करके अनन्त दुःखों को भोगते हैं। इनका त्याग करके धर्म में मन को लगाने से आत्मा का कल्याण होता है । आरंभ का त्याग करो मुइस विविह आरंभ आरंभे होइ जीवसंघारो । संधारेण य पावं पावेण य णरयवासम्मि ॥३२॥ अन्वयार्थ : (विविह आरंभ) विविध आरंभ को (मुद्दसु) छोड़ो (आरंभे) आरम्भ से (जीवसंघारी) जीवों का घात होता है (संघारेण य) जीवघात करने से (पावं) पाप (होइ) होता है (पावेण य) और पाप से (णरयवासम्मि) नरक में आवास प्राप्त होता है । संस्कृत टीका : रे मूर्ख जीव ! त्वं पापारम्भं त्यज । कस्मात् ? पापारम्भात् षट्कायजीवानां संहारो भवति, पुनः प्राणिनां संहारात्पापं भवति पश्चात् पापात् नरके दुःसहं दुःखं भुङ्क्ते । टीकार्थ : रे मूर्ख जीव ! तुम पापरूप आरंभ का त्याग करो। क्यों ? पाप के कारणभूत आरंभ से षट्कायिक जीवों का संहार होता है। उन प्राणियों का घात होने से पाप उत्पन्न होता है। पश्चात् पाप से नरक में दुःखों को भोगना पड़ता है । भावार्थ : पृथ्वी कायिक जीव, जलकायिक जीव अग्निकायिक जीव, वायुकायिक जीव, वनस्पतिकायिक जीव और त्रसकायिक जीव ये षट्कायिक जीव हैं। आरंभ करने से इनका घात होता है। हिंसा पाप का 41 1

Loading...

Page Navigation
1 ... 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98