Book Title: Samboha Panchasiya
Author(s): Gautam Kavi
Publisher: Bharatkumar Indarchand Papdiwal

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Page 62
________________ reO संजौह पवासिया समाधान :- पूर्व कर्मोदयवशात् ऐसे भाव होते हैं। भावार्थ: जीव जैसे भाव करता है, उा भावों के अनुरूप कर्म आत्मा से बन्ध जाते हैं, आत्मा ने पूर्व में अशुभकर्म का उपार्जन किया था जिसके फल से ही। वह बहुविध दुःखों को प्राप्त कर रहा है। धर्म का फल जं जं दुलहं जं जं सुंदर जं जं च तिहुवणे सारं । तं तं धम्मफलेण व माहीणं तिहुयणं तस्स ।।३४॥ अन्वयार्थ :(जं जं) जो-जो (दुलह) कुर्लभ (जं जं) जो-जो (सुंदर) सुन्दर (च) और (जं जं) जो-जो (तिहुवणे) त्रिलोक में (सारं) सारभूत है (तं तं) वह वह (धम्मफलेण य) धर्म के फल से हैं। धर्म से (तस्स) उस जीव के (तिहुयणं) त्रिलोक भी (साहीणं) स्वाधीन होते हैं। | संस्कृत टीका :--. | हे जीव ! अत्र संसारेऽसौ जीवः धर्म कृत्वा महादुर्लभ वस्तु प्राप्नोति । यानि | | यानि सारं सारीभूतवस्तुनि त्रिभुवनेषु धर्मोदयादयं जीवः प्राप्नोति । इदं किं झयम्? धर्मस्य फलं शेयम् । पुनरयं जीवः धर्मोदयात् स्वाधीनपदं मोक्षपदं प्राप्नोति । | तथोक्तम् - धर्मतः सकलमङ्गलावली, धर्मतः सकलसौख्यसम्पदा । धर्मतः स्फुरति निर्मलं यशो, धर्म एव तद्भो विधीयताम् ॥ तथा च - वने रणे शत्रुजलाग्निमध्ये, महार्णवे पर्वतमस्तके वा। सुप्तं प्रमत्तं विषमस्थितं वा, रक्षन्ति पुण्यानि पुराकृतानि ॥

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