Book Title: Samboha Panchasiya
Author(s): Gautam Kavi
Publisher: Bharatkumar Indarchand Papdiwal

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Page 54
________________ संबोयंचाभिया - भावार्थ : बुढापे में इन्द्रियाँ शिथिल हो जाती हैं, बाल सफेद हो जाते हैं, दाँतों की पंक्ति विलय को प्राप्त हो जाती है, आँखों को ज्योति नष्ट हो जाती है, कानों की शक्ति विनष्ट हो जाती है और बुद्धि लुप्तप्रायः होने लगती है। अर्थात् बुढापा अति कष्टदायक है। ऐसा जानकर युवावस्था में ही हमें धर्म में प्रवृत्ति करनी चाहिये। . पाप का फल पावेण य उप्पण्णो वसियो दुक्खेण गब्भवासम्मि। पिंडं पावं बद्धं अज्जवि पावे रईं कुणई ।। २७।। अन्वयार्थ :(पावेण य) पाप से (गब्भवासम्मि) गर्भवास में (उप्पण्णो) उत्पन्न हुआ (दुक्खेण) दुःख से (वसियो) वास करता हुआ (पावं) पाप (पिंह) पिण्ड (बढ़) बांध रहा है। (पावे) पाप का (अज्जवि) अर्जन कर (र) राग (कुणाई) करता है। संस्कृत टीका : रे जीव ! अश्र संसारमध्ये मोहविषयवशात्पापेन कृत्वा त्वमुत्पन्नः । क्व ? मलमूत्रदुर्गन्धायभाजने गर्भावासमध्ययुत्पन्नः । तत्र स्थाने रति कृत्वा पापमयं पिण्ड बद्धम्। तयधुना पापोपरि विषयोपरि कथं रतिं करोषि ? उक्तव्य याता याता रतिं तत्र,येऽपि ते तेऽपि मर्दिताः। अतो लोकस्य दैत्यात्म्यं, वैराग्यं किं न जायते? पुनश्चोक्तम् वैराग्यात्स्वसुखं चैव, वैराग्याकुःखनाशनम्। वैराग्यात्काय आरोग्यम्, वैराग्यान्मोक्षजं सुखम् ॥ टीकार्थ : रे जीव ! इस संसार में मोह से व विषयों के वश से पापों को करके तुम |

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