Book Title: Samboha Panchasiya
Author(s): Gautam Kavi
Publisher: Bharatkumar Indarchand Papdiwal

View full book text
Previous | Next

Page 50
________________ अर्थात् :- बाल्यावस्था में अपने व्दारा जो अयोग्य कार्य किये गये, उनका स्मरण भी हो जाय तो मनुष्य को वैराग्य की प्राप्ति हो जाती है फिर अन्य के विषय में क्या निवेद नहीं होगा? अर्थात् अवश्य ही होगा। बाल्यावस्था के समस्, दुःला तो स fuc2-87ी हैं : यौवनावस्था के दुःख कस्स वि धणेण रहियं कस्स वि मणविरह वेयणा दुक्खं । कस्स वि इट्ठ विजोगो कह मूढय जोव्वणे सुक्खं ॥२४ ।। अन्वयार्थ :(कस्स वि) कोई (धणेण) धन से (रहियं) हीन हैं, (मण) मन (विरहवेयणा). विरहवेदना से (दुवखं) दुःखी है,(कस्स दि) किसी को (बहविजोगो) इष्ट का वियोग है । (मूढय) हे मूढ ! (जोठवणे) यौवन में (सुक्य) सुख (कह)। कहाँ है ? अर्थात् कहीं भी नहीं। | संस्कृत टीका :| हे शिष्य ! अस्य संसासय दुःखं कथयामि, त्वं शृणु। केचन लोका धनरहिताः | कामविरहवेदनाभिः दुःखिनो भवन्ति । केचन लोका इष्टवियोगेन दुःखं भुअन्ते। रे मूढ ! अत्र संसारे कथं सुखं भवति ? अपि तु न भवति । केथिल्लोकात्यन्तरागैः दुःखं मुअन्ते। टीकार्थ : हे शिष्टा ! इस संसार के दुःखों को मैं कहता हूँ. तुम सुनो । कोई लोग धनरहित हैं, कोई कामविरह की वेदना से दुःखी हैं. कोई इष्टवियोग के दुःख भोग रहे हैं। रे मूढ़ ! इस संसार में सुख कहाँ है ? अपितु नहीं हैं। कुछ लोग अत्यन्त राग के कारण दुःख भोगते हैं। भावार्थ : यौवनावस्था श्री सुस्न का नियामक कारण नहीं है । इस अवस्था में भी कुछ लोग अनेक प्रकार का पुरुषार्थ करने के उपरान्त भी धन को नहीं पाले हैं। फलतः ते धन से रहित होने के कारण दुःखी हैं। कुछ लोगों के पास अतुल धन है, परन्तु अधिक पाने की इच्छा से अधदा वासना की तृप्ति न हो

Loading...

Page Navigation
1 ... 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98