Book Title: Samboha Panchasiya
Author(s): Gautam Kavi
Publisher: Bharatkumar Indarchand Papdiwal

View full book text
Previous | Next

Page 21
________________ Postaौनो कावासिया गुणों को नमस्कार करता हूँ ! सिद्धों में क्या विशेषता है ? वे आठ गुणों से सहित हैं। पुनः वे किस विशेषता से युक्त हैं ? तीन भुवन में अर्थात् त्रैलोक्य में सारभूत अर्थात् श्रेष्ठ हैं एवं वे निरंजन हैं अर्थात् सभी कर्मों के कलंक से रहित हैं । फिर मैं तीनों निर्ग्रन्थ गुरुओं को जमस्कार करता हूँ। वे तीजप्रकार के निर्ग्रन्थ गुरु के हैं. छत्तीस गुजों से युक्त आचार्य, पच्चीस गुणों से युक्त उपाध्याय तथा अठाईस गुणों से मण्डित साधु परमेष्ठी हैं। नमस्कार क्यों करता हूँ ? मोक्ष के लिये । भावार्थ : __ग्रन्थ के आरम्भ में मंगलाचरण करना आर्ष की परिपाटी है ।। नास्तिकता का परिहार, आस्तिकता का उद्योतन, विघ्न का निवारण अथवा पुण्य का प्रकाश करने के लिए मंगलाचरण किया जाता है। यहाँ मंथकार ने पाँच परमेष्ठियों को नमस्कार किया है। जिन्होंने चार घातिया कर्मों का विनाश किया है. उन्हें अरिहन्त कहते हैं। इस जन्म के अतिशय, दस केवलज्ञान के अतिशय, चौदह देवकृत अतिशय, आठ प्रातिहार्य और चार अनन्त चतुष्टय, ये छियालीस मूलगुण अरिहन्त प्रभु के होते हैं। जिन्होंने कर्मकलंक का नाश किया है, जो त्रैलोक्य में श्रेष्ठ हैं, उन्हें सिद्ध कहते हैं। सम्यक्त्व, ज्ञान, दर्शन, वीर्य, सूक्ष्मत्व, अवगाहनत्व, अगुरुलघुत्व तथा अव्याबाधत्व इन आठ मूलगुणों से सिद्ध परमेष्ठी मण्डित हैं। जो पाँच आचारों का पालन करते हैं व कराते हैं वे आचार्य हैं। उनके दस धर्म, बारह तप, छह आवश्यक, पाँच आचार व तीन गुप्ति ऐसे छत्तीस मुलगण होते हैं। जो स्वयं पढ़ते हैं व शिष्यों को ज्ञानाध्ययन कराते हैं वे उपाध्याय परमेष्ठी हैं। वे ग्यारह अंग व चौदह पूर्व ऐसे पच्चीस गुणों के धारक हैं। जो आत्मा की साधना करते हैं वे साधु हैं । उनके पाँच महाव्रत, पाँच समिति, पाँच इन्द्रियनिरोध, छह आवश्यक व सात शेष गुण इसप्रकार अधाईस मूलगुण होते हैं। पाँचों ही परमेष्ठी संसार में मंगल करने वाले हैं तथा परमस्थान में विराजित हैं। अतः उन्हें परमगुरु कहा है। मोक्ष को प्राप्त करना प्रत्येक भव्यजीव का चरम लक्ष्य है। उसी लक्ष्य की सिद्धि के लिए ग्रन्थकार ने विजयपूर्वक उपर्युक्त पाँच परमगुरुओं को नमस्कार किया है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98