Book Title: Samboha Panchasiya
Author(s): Gautam Kavi
Publisher: Bharatkumar Indarchand Papdiwal

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Page 23
________________ Hoसोहा अंजासिया मनुष्य जन्म की दुर्लभता जइ कहव माणुसत्तं लद्धं महारिमुह (?) अकयत्थं । रयणायरपरमाणं लोडिज्जंतं ण पावहसि ॥३॥ अन्वयार्थः(जई) यदि (कहव) करना (माणु सत्तं) मनुष्य जन्म (लद) पाथा है (महारिमुह) महाशत्रु (अकयत्थं) अकृतार्थ मत कर । (रयणायरपरमाणं) रत्नाकर (सागर) के मध्य में (लोहिज्जतं) अवलोकन करने पर (ण पावहसि) नहीं पा सकेगा। {इस गाथा के कुछ शब्द संशयास्पद है। अतः अन्वयार्थ ठीक सा नहीं बन पाया है। - अनुवादक) संस्कृत टीका : हे जीव ! अत्र संसारे त्वया मनुष्यजन्मग्रामम् । कीरशं जन्मप्राप्तम् ? मूढत्वम्, अज्ञानत्वम् , अकृतार्थम् - इन्द्रसम जन्मप्राप्तम् । किमिव ? यथा रत्नाकर - सागरमध्ये महत्ता कष्टेनावलोकिते सत्ति रत्नं प्राप्नोति तथा संसारमध्येऽनन्तकाले भ्रमिते सति नृजन्मप्राप्तम् । परं सुखेन नृजन्म न प्राप्यते, इति मत्वा मिथ्यात्वं मुक्त्वा जिनधर्म कुरु। विद्वान् जानाति विद्वान्सं, गुणी शूरस्य शूरताम्। वन्ध्या नैव विजानाति , गुर्वी प्रसववेदनाम् ॥१॥ तथा चोक्तम् धर्मकल्पद्रुमस्यास्य ,मूलं सम्यक्त्वमुल्यणम् । ज्ञानं स्कन्धो व्रतान्येव, शाखापत्राण्यनेकशः ||२|| येषां न पूजा जिनपुङ्गवस्य , न दानशीलं न तपो जपश्च। न धर्मसारं गुरुसेवनं च, गेहे रथे ते वृषभाश्चरन्ति ॥३||

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