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अनुक्रमणिका
प्रथम खण्ड
अभिनन्दनीय जीवनवृत्त व्यक्तित्व एवं कृतित्व : एक मूल्यांकन
१-१००
द्वितीय खण्ड जैन आगम साहित्य
क्र०सं०
लेख
पृष्ठ संख्या
१-४१ ४२-४५
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अर्धमागधी आगम साहित्य : एक विमर्श आगम साहित्य में प्रकीर्णकों का स्थान, महत्त्व, रचनाकाल एवं रचयिता नियुक्ति साहित्य : एक पुनर्चिन्तन आचारांगसूत्र : एक विश्लेषण रामपुत्त या रामगुत्त : सूत्रकृतांग के संदर्भ में अन्तकृद्दशा की विषयवस्तु : एक पुनर्विचार प्रश्नव्याकरण की प्राचीन विषयवस्तु की खोज जैन, बौद्ध और औपनिषदिक ऋषियों के उपदेशों का प्राचीनतम संकलन : ऋषिभाषित मूलाचार : एक विवेचन
४६-६० ६६-६७ ६८-६९ ७०-७३ ७४-८२ ८३-९०
९.
तृतीय खण्ड,दर्शन
१०. जैनदर्शन में सत् का स्वरूप ११. जैन दर्शन में द्रव्य, गुण एवं पर्याय की अवधारणा १२. जैन दर्शन में पंच अस्तिकाय और षट् द्रव्यों की अवधारणा १३. महावीर कालीन विभिन्न आत्मवाद एवं जैन आत्मवाद का वैशिष्ट्य १४. जैन दर्शन में आत्मा-स्वरूप एवं विश्लेषण १५. षट्जीव निकाय में त्रस एवं स्थावक के वर्गीकरण की समस्या १६. जैन दर्शन में पुद्गल और परमाणु १७. जैन दर्शन में ज्ञान के प्रामाण्य और कथन की सत्यता का प्रश्न १८. जैन वाक्य दर्शन १९. स्याद्वाद और सप्तभंगी : एकचिन्तन २०. प्रमाण-लक्षण-निरूपण में प्रभाण मीमांसा का अवदान २१. 'जैन दर्शन के तर्क प्रमाण' का आधुनिक सन्दर्भो में मूल्यांकन २२. मूल्य दर्शन और पुरुषार्थ चतुष्टय २३. जैन शिक्षा दर्शन २४. जैन कर्म सिद्धान्त एक विश्लेषण २५. प्राचीन जैन आगमों में चार्वाक दर्शन का प्रस्तुततीकरण एवं समीक्षा २६. अद्वैतवाद में आचार दर्शन की सम्भावना : जैन दृष्टि से समीक्षा
९७-१०१ १०१-१०५ १०६-११२ ११२-११७ ११७-१२६ १२६-१३० १३०-१४० १४१-१४५ १४६-१५३ १५४-१६८ १६८-१७१ १७२-१८४ १८४-१९२ १९३-१९८ १९९-२१७ २१७-२२३ २२४-२२६
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