________________
(१५) उपकारी अप्रमाद बांधवमेंही सर्व विश्वास स्थापन करना कि जिरसे सर्वत्र यश प्राप्त होय. ___ २५ विश्वासको कबीभी दगा देना नहि. ___ विश्वास रखकर जो शरण आवे उस्को दगा देना उस्के समान कोइ एकभी ज्यादा पाप नहि है. वो गोदमें सोते हुवेका शिर काट देने जैसा जुल्म है. अच्छे अच्छे बुद्धिशाली लोकभी धर्मके लिये विश्वास करते है. तैसे धर्मार्थी जनोंको स्वार्थाध बनकर धर्मके व्हानही ठग लेवे यह बड़ा अन्याय है.आपहीमें पोलपोल होवे तोभी गुणी गरुका आडंबर रचके पापी विषयादि प्रमादके परवशपनेसें भोले लोगोंको ठग लेवे. तिन्के जैसा एकभी विश्वासघात नहीं है. भोले भक्त जानते है कि अपन गुरुकी भक्ति करके गुरुका शरण लेकर यह भवजल तिर जाएंगे. लेकिन पत्थरके नावकी मुवाफिक अनेक दोषोसे जो दूषित है तो भी मिथ्या महत्वको इच्छनेवाले दभी कुगुरु आपको और परिक्षा रहित अंधप्रवृत्ति करनेवाले आपके भोले आश्रित शिष्य भक्तोंको, भव समुद्रमें डूबा देते है और ऐसे स्वपरको मह। दुःख उपाधिमें हाथसे डाल देते है, जो ऐसा कार्य करते हे वो धर्मठग कुगरओको यह संसार चक्रमें परिभ्रमण करनेमें समय महा कट फलका स्वादानुभव लेना पडता है. इस वास्तही श्री सर्वज्ञ देवने धर्म गुरुओको रहणी करणी बराबर रखकर निर्दभतासे वर्तने काही फरमान कीया है. अपन प्रकटतासे देख सकते है कि कितनेक कुमतिके फंदमें फसे हुवे और विषय वासनासे पूरित हुवे हो तदपि धर्मगुरुका डोल-स्वांग धारण कर केवल अपना तुच्छ स्वार्थ सिद्ध करनेके लिये अनेक प्रपंच जाल गुथन कर और अनेक कुतर्क करके सत्य और हितकर सर्वज्ञके उपदेशकोभी छुपाते है इस तरहसे आप धर्मगुरुही धर्मठग बनकर भोले हिरन साहा केवल