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आत्मा परमात्मा - सिद्धात्मा होकर जो लोकाय अजरामर, अचल, निरुपाधिक स्थानको संप्राप्त होता है सो मोक्ष कहा जाता है.
७४ मोक्षका उपायभी है-- सम्यक ज्ञान ( तत्वज्ञान ), सम्यक दर्शन ( तत्व दर्शन ) और सम्यक चारित्र ( तत्व रमण) यह मोक्ष प्राप्तिके अवंध्य-अमोघ उपाय है. • ७५ सबके साथ मैत्रीभान रखना सर्व जीवों को मित्रही जानना, किसीके साथ शत्रुता धारण करना नहि, सबमें जीवत्व समान है, सर्व जीव जीनेकी इच्छा रखते है, सुख दुःख समय मित्रवत् समभागी होना. द्वेष इर्ष्या या स्वार्थबुद्धिसे किसीका भी कार्य विगाडना नहि. ___ ७६ पापी, निर्दय, कठोर परिणामवाले प्राणीओंपरभी द्वेषभाव धरना नहि तसे दुर्भव्य वा अभव्य जीवके साथ प्रीति वा द्वेष रखना नहि. मध्यस्थ रहकर चितवन करना : कि वो बिचारे निबिड कर्मके पश होकर तैसा वर्तन करते है.
७७ बुद्धिवंत होकर तत्वका विचार करना-कि में ऐसी स्थितिवंत क्यों हुवा ? मेरेको कैसा सुख अभिष्ठ है ? वो कैसे मिल सके ? मेरेको सुखमें अंतराय कौन करता है ? उन उन अंतरायोंको में किस प्रकारसे दूर कर सकुं ? वगैराः वगैराः। ___७८ मानवदेह प्राप्त करके वन सके वैसे सुव्रत धारण करे बोध प्राप्त कियेका यही सार है कि असार और अनित्य देह से सार व्रत धारण कर सत्य और सनातन धर्म साधना. __७९ लक्ष्मी प्राप्त करके सुपात्र दान दे, सदुपयोग करे लक्ष्मीका चंचल स्वभाव जानकर विवेकसे पात्र-सुपात्र दान देना, सो ऐसा समझकर देना कि ' हाथसे करेंगे सोही साथ आयगा' 'जैसा देखेंगे तैसाही पावंगे.'