Book Title: Sadbodh Sangraha Part 01
Author(s): Karpurvijay
Publisher: Porwal and Company

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Page 84
________________ ( ७६ ) वह अदत्तादान लेनेका नियम किस रीतिसे पाले ? उत्तर जिनेश्वर भगवान्की या गुरुजी की आज्ञा विरुद्ध कुछ भी चीज लेवे देवे नहि. अगर उन्होंकी आज्ञा हुए बादभी जो मालधनीकी रजा न मिली हो तो कुच्छमी चीज लेवे देवे नहि. अगर मालधनीकी रजा मिलचूकी हो मगर सचित्त या मिश्र वस्तु हो तो देवे नहि, उस्को अदत्तादान विरमण व्रत पालन किया कहा जाता है. प्रश्न ८ सर्वथा मैथुन त्याग - ब्रह्मचर्यव्रत किस प्रकारसे पालना ? उत्तर -- देव, मनुष्य और तिर्यच सबंधी विषय क्रीडा बिलकुल त्याग दे, किवा पांचों इद्रियोंके विषयोंको कब्ज करे. आप उन्हों को वश्य न हो, उस्को सर्वथा मैथुन त्याग किया कहा जावे. प्रश्न ९ सर्वथा परिग्रह त्याग किस तरहसे पालन करे ? उत्तर -- जस्सेि मूर्छा हो तैसी मारे या हलकी ( सचेत अचेत या मिश्र ) वस्तुका संग्रह ही न करें तब बिलकुल परिग्रह परित्याग किया कहा जावे. प्रश्न १० सर्वथा रात्रि भोजनका त्याग किस प्रकारसे पाले ? उत्तर -- कोइ भी प्रकारका आहार, सूर्योदय हुए प्रथम या सूर्यास्त हुए बाद न खावे. ( वास्तविक रीति तो यह है कि सूर्यके उदय होने बाद दो घड़ी और सूर्य अरे । पहिलेकी दो घडी भी त्याग देनी योग्य है. नहि तो रात्रि भोजनका भांगा लगता है. प्रश्न ११ उपर कहे हुए व्रतोंको महाव्रत कहनेका सबब क्या है ? उत्तर. गृहस्थ के अणुत्रतकी अपेक्षासे वो महाव्रत कहे जाते है.. किंवा महान् शूरवीर मनुष्यसे ही सेवन कीये जाते है ( डरपोक - कातरसे सेवन न कीये जावे ) इसी लिये उन्हको महाव्रत कहते है. प्रश्न १२ अणुव्रत किसको कहते है ? उत्तर अगु अर्थात् छोटा. मुनिके महान् व्रतों से बहोतही कम -

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